Lathmar Holi of Barsane : नई दिल्ली। होली का त्योहार नजदीक आ रहा है। पूरे देश में होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 8 मार्च को देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में होली मनाई जाएगी। देश में कई तरह की होली खेली जाती है। जिसमें से एक होती है। दुनिया भर में प्रसिद्ध लठमार होली।
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Lathmar Holi of Barsane : ब्रज के बरसाना गाँव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली ख़ास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहाँ की होली में मुख्यतः नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं।
Lathmar Holi of Barsane : नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। नंदगाँव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फ़िर शुरु हो जाते हैं। इस दौरान भाँग और ठंडाई का भी ख़ूब इंतज़ाम होता है। इस बार बरसाने में लट्ठमार होली 28 फरवरी 2023 को खेली जाएगी।
Lathmar Holi of Barsane : बता दें कि बरसाना में होने बाली लट्ठमार होली का आयोजन के चलते 26 फरवरी से बरसाना में भारी वाहन प्रतिबंधित हो जाएंगे। रविवार से बरसाना की तरफ जाने वाले भारी वाहन पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेंगे। गोवर्धन, छाता, कोसीकलां और कामां से कोई भी भारी वाहन बरसाना की तरफ नहीं जा सकेगा। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस के जवान पूरी तरह से मुस्तैद रहेंगे।
Lathmar Holi of Barsane : कहा जाता है कि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। भगवान श्रीकृष्ण बेहद शरारती थे और राधा व उनकी सखियों को अपने गोप-ग्वालों के साथ अक्सर सताते थे। द्वापर युग में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को वे अपने गोप-ग्वालों के साथ होली खेलने बरसाना गए। इस बीच राधा और उनकी सखियों ने लाठियों से उन पर वार किया और कृष्ण व उनके सखाओं ने ढालों से खुद का बचाव किया। होली खेलने के बाद कृष्ण और उनके सखा बिना फगुआ (होली या फाग के अवसर पर दिया जाने वाला उपहार) दिए ही नंदगांव लौट गए।
तब राधा और उनकी सखियों ने योजना बनाई और फगुआ दिए बिना वापस लौटने की बात कहकर लोगों को इकट्ठा किया। इसके बाद अगले दिन यानी दशमी तिथि को वो सभी फगुआ लेने के बहाने नंदगांव पहुंचे वहां फिर से लट्ठमार होली खेली। तब से इस लीला को जीवंत रखने के लिए हर साल बरसाना की गोपियां होली का नेग लेने दशमी के दिन नंदगांव आती हैं और वहां दोबारा लट्ठमार होली का आयोजन होता है।