रायपुर । भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के महान नेता खूबचंद बघेल आज भले ही हमारे बीच मौजूद ना हो लेकिन उनकी सोच आज भी सच्चे छत्तीसगढ़िया लोगों के जहन में जिंदा है। वे विधायक और राज्य सभा के सांसद भी रहे। डॉ. खूबचंद बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरीतियों को देखकर खून खौल उठता था। उन्होंने हमेशा इन बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेकों बार समाज के गुस्से का सामना करना पड़ा। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए थे। 1946 में उनको तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था।
खूबचंद बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरीतियों को देखकर खून खौल उठता था। हमेशा इन बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत सारे प्रयास किये। जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेकों बार समाज के गुस्से का सामना करना पड़ा। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में छुआछूत, ऊँच- नीच की भावना व्याप्त थी। खूबचंद बघेल ने जब से अपना होश सम्हाला था, तब से उन्हें जातिगत भेद भाव से चिढ़ थी। उन्होंने जातिगत भेद भाव के साथ साथ उपजातिगत भेद भाव को भी दूर करने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज के समय में कुर्मी समाज में व्याप्त उपजाति भेदभाव को दूर किया जा सका है। इस भेदभाव को मिटाने के लिए डॉ. बघेल जी स्वयं मनवा कुर्मी के थे, परन्तु उन्होंने अपनी एक पुत्री का विवाह दिल्लीवार कुर्मी समाज में तथा सबसे छोटी बेटी का विवाह पटना के राजेश्वर पटेल जी से करवाया; फलस्वरूप उन्हें समाज के क्रोध के कारण कुर्मी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। परन्तु वे हमेशा से इस उपजाति बंधन को तोड़ने में लगे रहे।
खूबचंद बघेल हमेशा से छत्तीसगढ़ के विकास और छत्तीसगढ़ को एक अलग पहचान दिलाने के लिए कार्य किया, वे हमेशा छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने के लिए अनेक प्रयास किये,वे हमेशा यही चाहते थे की छत्तीसगढ़ को लोग क्यों ऐसे हीन भावना से देखते है हमेशा इससे सौतेला व्यावहार क्यों करते हैं बस इन्ही बातों की चिंता उन्हें सताते रहती थी। जातिगत भेदभाव, कुरीतियों को मिटाने वाले इस महान व्यक्ति का निधन संसद के शीतकालीन सत्र के लिए भाग लेने दिल्ली गए हुए थे वहाँ दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक निधन 22 फरवरी 1969 को हो गया।