नई दिल्ली। Motilal Nehru Death Anniversary : आज देश को आजाद हुए कई साल बीत चुके हैं। देश को आजादी दिलाने के लिए कई महापुरुषों ने अपना बलिदान दिया तो कई महापुरुषों ने आजादी की जंग जितने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज जब भी हम महापुरुषों की चर्चा करते हैं तो कई नाम सामने आते हैं, इनमें से एक नाम है ‘मोतीलाल नेहरू’ का। आज के ही यानी 6 फरवरी के दिन साल 1931 में मोतीलाल नेहरू का निधन हो गया था।
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मोतीलाल नेहरू कांग्रेस के नेता थे इसके अलावा वे बहुत मशहूर वकील भी थे। उस जमाने में लोग उन्हें उनके बेटे के नाम से भी पहचानने लगे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके बेटे ने दो साल पहले ही कांग्रेस के मशहूर लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की थी जिसमें कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि उनके बेटे का नाम जवाहरलाल नेहरू था। वे भले ही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन भारतीय इतिहास में उनका भी एक खास स्थान था।
एक नेता और वकील होने के साथ-साथ मोतीलाल नेहरू एक अच्छे पत्रकार भी थे। दरअसल, एक वकील होने के साथ साथ उनकी शोहरत उन्हें राजनीति में भी खींच लाई और इसके साथ वे इलाहबाद के दैनिक अखबार द लीडर के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पहले चेयरमैन भी बने। इस दौरान उन्होंने बहुत काम किया लेकिन जब उन्होंने देखा कि द लीडर उनके विचारों के अनुकूल नहीं काम कर रहा है तो उन्होंने 1919 में खुद का ही द इंडिपेंडेंट नाम से अखबार निकाल लिया। बता दें मोतीलाल नेहरू ने गांधी जी के कहने पर ही शानो शौकत वाली लाइफस्टाइल छोड़ी थी।
Motilal Nehru Death Anniversary : आजादी में मोतीलाल नेहरू का बेहद अहम रोल रहा। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिहाज से 1920 का दशक उनके जीवन का सबसे प्रमुख समय था। 1922 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में मोतीलाल गिरफ्तार होकर जेल गए। पुराने रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार गांधी जी ने आंदोलन रद्द करने पर उन्होंने खुल कर गांधी जी की आलोचना की। इसके बाद वे स्वराज पार्टी की स्थापक सदस्यों में से एक बने जिसमें 1920 के दशक के मध्य में देश में बहुत लोकप्रियता हासिल की और वे यूनाइटेड प्रोविंसेस लेजिस्लेटिव काउंसिल के विपक्ष के नेता भी बने। जवाहर लाल नेहरू ने अपने पिता मोतीलाल नेहरू की मशहूर नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया था।
बताया जाता है कि नेहरू रिपोर्ट कांग्रेस ने तो स्वीकार कर ली थी, लेकिन उनके बेटे यानी जवहार लाल नेहरू सहित अन्य कई राष्ट्रवादी नेताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा कि भारतीयों को पूर्ण स्वराज की मांग करनी चाहिए। इसके अलगे साल कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया।