मुंबई। जिन्हें संगीत, शायरी और गजल सुनना पसंद है। उनके बीच जगजीत सिंह एक बड़ा नाम है। अपनी गजल से दशकों तक लोगों को आनंदित करने वाले जगजीत सिंह आज भले ही भौतिक रुप से हमारे बीच मौजूद ना हो लेकिन उनकी आवाज और उनका गजल हर दिन , हर समय किसी ना किसी के मन और दिल को आनंदित जरुर कर रहा होगा। भारत में वैसे तो कई गजलकार पैदा हुए लेकिन कोई जगजीत सिंह की जगह नहीं ले सका शायद इसी कारण उन्हें गजल का शहंशाह कहा जाता है।
जगजीत सिंह 1987 में बियोंड टाइम अलबम के साथ भारतीय संगीत के इतिहास में डिजिटल मल्टी ट्रैक रिकॉर्डिंग करने वाले वे पहले कंपोजर बने। गज़ल के शहंशाह जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था।पिताजी उन्हें बचपन में जगजीवन नाम से बुलाया करते थे लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने अपना नाम बदलकर जगजीत सिंह रख लिया। पढ़ाई के बाद जगजीत सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो जालंधर में एक सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में काम शुरू कर दिया। उसके बाद कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी हरियाणा से पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई भी की। साइनिया घराने से ताल्लुक रखने वाले जगजीत सिंह ने उस्ताद जमाल खान से खयाल, ठुमरी, ध्रुपद जैसी गायन विधाओं में महारत हासिल की। पंजाबी, हिन्दी, उर्दू, बंगाली, गुजराती, सिंधी और नेपाली भाषाओं में गजल गाने वाले जगजीत सिंह को 2003 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से अलंकृत किया गया।
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मार्च 1965 में जगजीत सिंह अपने परिवार को बिना बताए मुंबई चले आए थे और स्ट्रगल शुरू कर दिया था। मुंबई में जगजीत सिंह की मुलाकात एक बंगाली महिला चित्रा दत्ता से हुई और दोनों 1969 में शादी के बंधन में बंध गए और इन्हें एक बेटा विवेक भी हुआ। साल 1976 में जगजीत सिंह और चित्रा की एल्बम ‘The Unforgettable’ रिलीज हुई, जिसे काफी सराहा गया। इस एल्बम का गीत ‘बात निकलेगी’ काफी पसंद किया गया था और आज भी एक सुपर हिट गजल है। जगजीत सिंह और चित्रा सिंह एक साथ कई सारे कॉन्सर्ट किया करते थे और अलग-अलग गजल एलबम का हिस्सा भी बने, इनका 1980 में आया हुआ एल्बम ‘वो कागज की कश्ती’ बेस्ट सेलिंग एल्बम बन गया था। उस जमाने में जगजीत सिंह गजल किंग बन गए थे। प्राइवेट एल्बम के साथ-साथ जगजीत ने फिल्मों में भी कई गजलें गाईं , उनमें ‘प्रेम गीत’, ‘अर्थ’, ‘जिस्म’, ‘तुम बिन’, ‘जॉगर्स पार्क’ जैसी फिल्में प्रमुख हैं।