Lakhani Devi Mandir: इकबीरा पर्वत में अष्ट कमल पर विराजित हैं महालक्ष्मी का ये मंदिर… आकाल-महामारी से बचने के लिए श्रीयंत्र से हुआ निर्माण

Lakhani Devi Mandir: इकबीरा पर्वत में अष्ट कमल पर विराजित हैं महालक्ष्मी का ये मंदिर... आकाल-महामारी से बचने के लिए श्रीयंत्र से हुआ निर्माण

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  • Publish Date - October 31, 2024 / 03:36 PM IST,
    Updated On - October 31, 2024 / 03:36 PM IST

Lakhani Devi Mandir Ratanpur: आज हम आपको प्रदेश के एक ऐसे प्राचीन मंदिर का दर्शन कराने जा रहे हैं, जिसे मां महालक्ष्मी का दिव्य धाम कहा जाता है। मां महालक्ष्मी यहां सौभाग्यलक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। इकबीरा पर्वत में स्थित इस मंदिर की कई प्राचीन मान्यताएं है।प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थित प्रदेश के एकमात्र प्राचीन मां महालक्ष्मी मंदिर लखनी देवी मंदिर में प्रदेशभर से लोग दर्शन करने आते हैं।

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बिलासपुर से 25 किमी दूर धार्मिक नगरी रतनपुर में इकबीरा पहाड़ी पर स्थित लखनी देवी मंदिर की कई प्राचीन मान्यताएं हैं। मां महालक्ष्मी को ही यहां मान्यताओं में लखनी देवी कहा गया है, जो मां लक्ष्मी का ही अपभ्रंश है। इसे प्रदेश का एकमात्र प्राचीन मां महालक्ष्मी मंदिर भी माना जाता है। मान्यता है कि, मां महालक्ष्मी के दर्शन मात्र से उनका आशीर्वाद श्रद्धालुओं को मिलता है। धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, माता के इस दिव्य धाम का इतिहास 846 वर्ष पुराना व ऐतिहासिक है।

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11 वें ईस्वी में राजा रत्नदेव तृतीय के शासन में इस मंदिर की स्थापना की गई थी, तब से आज तक मां महालक्ष्मी का ये दिव्य धाम श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है। खास कर दीपावली धनतेरस के साथ ही पूरे समय यहां मां महालक्ष्मी के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। मां महालक्ष्मी धन, वैभव, सुख समृद्धि के साथ अपना आशीर्वाद श्रद्धालों पर बरसाती हैं। कहा जाता है, माता के दर्शन के कभी धन, वैभव की कमी नहीं होती है। मां महालक्ष्मी के इस दिव्य धाम के स्थापना को लेकर मान्यता है। जब रत्नदेव तृतीय का वर्ष 1178 में राज्यारोहण हुआ था, तब उनके राज्यारोहण करते ही क्षेत्र में अकाल और महामारी की स्थिति निर्मित हो गई। राजकोष पूरा खाली हो गया, क्षेत्रवासी परेशान होने लगे। तब हालात को देखते हुए राजा के एक विद्वान मंत्री पंडित गंगाधर ने मां लक्ष्मी देवी मंदिर बनवाने की बात कही।

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इसके बाद क्षेत्र के इकबीरा पर्वत में मां महालक्ष्मी के दिव्य मंदिर की स्थापना हुई। उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई उन्हें इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था। मंदिर के बनते ही अकाल और महामारी राज्य से खत्म हो गई और सुख, समृद्धि, खुशहाली फिर से लौट आई। तब से मंदिर लखनी देवी मंदिर के नाम से प्रख्यात है। लखनी देवी मां महालक्ष्मी का ही अपभ्रंश है जो बोलचाल की भाषा में रूढ़ हो गया है। मंदिर का आकार पुराणों में वर्णित पुष्पक विमान की तरह है, जो एक विशाल पहाड़ पर स्थित है। यहां माता का गर्भ गृह श्रीयंत्र के आकार में निर्मित है।

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मां महालक्ष्मी गर्भ गृह में अष्टदल कमल में विराजमान हैं। जो अष्ट लक्ष्मी देवियों में सौभाग्य लक्ष्मी जी का है। मान्यता है, सौभाग्य लक्ष्मी के पूजा अर्चना से सौभाग्य रूपी फल की प्राप्ति होती है, मनोकामनाएं फलीभूत होती हैं और सुख समृद्धि आने लगती हैं। छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे देशभर से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। खास कर धनतेरस और दिवाली पर यहां माता का दिव्य स्वरूप श्रद्धालुओं के आस्था का सबसे बड़ा केंद्र होता है। बहरहाल, धार्मिक नगरी रतनपुर में मां महालक्ष्मी का ये दिव्य धाम लखनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का बड़ा केंद्र बना हुआ है। मां महालक्ष्मी क्षेत्र व श्रद्धालूओं पर अपनी कृपा बरसा रही हैं। मां के दर्शन कर लोग धन, वैभव, यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति कर रहे हैं।

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