देहरादून के निकट सुरम्य हिमालयी क्षेत्र में बना ‘लेखक गांव’

देहरादून के निकट सुरम्य हिमालयी क्षेत्र में बना 'लेखक गांव'

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  • Publish Date - October 24, 2024 / 06:44 PM IST,
    Updated On - October 24, 2024 / 06:44 PM IST

देहरादून, 24 अक्टूबर (भाषा) साहित्यकार के रूप में भी अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने देहरादून के निकट सुरम्य हिमालयी क्षेत्र थाने में एक ‘लेखक गांव’ विकसित किया है जहां लेखकों को अपनी कृतियों के सृजन के लिए जरूरी शांत एवं रचनाशील वातावरण मिलेगा।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यहां बताया कि देहरादून से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देश के अपनी तरह के इस पहले ‘लेखक गांव’ का उद्घाटन शुक्रवार को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उत्तराखंड के राज्यपाल ले जन गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी संयुक्त रूप से करेंगे ।

निशंक ने बताया कि तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य, कला और संस्कृति महोत्सव के रूप में मनाए जाने वाले उदघाटन समारोह के दौरान केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी तथा लेखिका ममता कालिया जैसे अनेक दिग्गज जुटेंगे ।

उन्होंने बताया कि 65 से अधिक देशों के लेखन, कला और संस्कृति से जुड़े लोग इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होंगे जिनमें से 40 देशों से लोग यहां आ रहे हैं । इनमें छात्र भी शामिल हैं जो लेखकों से जुड़ना चाहते हैं ।

निशंक ने बताया कि तीन दिनों में यहां 30 सत्र आयोजित किए जाएंगे जिनमें लेखन, संस्कृति, प्रकृति और कला से जुड़े विषयों पर चर्चा एवं विचार—विमर्श किया जाएगा।

महाकवि कालीदास, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसी कालजयी हस्तियों का उल्लेख करते हुए निशंक ने कहा, ‘हिमालय हमेशा प्रेरणा का केंद्र रहा है और इस धरती में कोई तो ऐसी बात है कि लोगों ने यहां से प्रेरणा लेकर दुनिया में अपना नाम किया।’

उन्होंने कहा कि लेखक गांव में पुस्तकालय, ध्यान-योग केंद्र, प्रेक्षागृह, हिमालयी संग्रहालय, संजीवनी भोजनालय, नक्षत्र वाटिका, ग्रह वाटिका जैसी सभी व्यवस्थाएं होंगी जहां लेखन कुटीर में रहकर लेखक अपनी सृजनशीलता को श्रेष्ठतम रूप दे सकेंगे।

यह पूछे जाने पर कि उन्हें लेखक गांव की प्रेरणा कैसे मिली तो निशंक ने कहा कि इसका जन्म पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की ‘पीड़ा’ से हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘अटलजी के मन में इस बात की बहुत पीड़ा थी कि इस देश में लेखकों का सम्मान नहीं है। उन्होंने उदाहरण दिया था कि यहां श्याम नारायण पांडे और (सूर्यकांत त्रिपाठी) निराला जैसे लोगों को जीवन के अंतिम क्षणों में बहुत दुर्दशा हुई थी। एक बार उन्होंने कहा था कि क्या कभी कोई इस दिशा में सोचेगा।’

उन्होंने कहा कि देश दुनिया के साहित्यकार यहां आकर जो सृजन करेंगे, उसे यहां छापा जाएगा जबकि जिनका कोई नहीं है, वे यहां आकर अपने जीवन के अंतिम क्षणों में स्वाभिमान से रह सकेंगे।

भाषा दीप्ति रंजन

रंजन