नई दिल्ली : Veer Bal Diwas : आज का दिन पूरे देश में ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा हैं। आज के दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गुरू गोविंद सिंह के पांच एवं आठ वर्षीय साहिबजादे शहीद हुए थे। इसी की स्मृति में केंद्र सरकार ने 09 जनवरी 2022 को 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस तरह भारत में पहली बार 26 दिसंबर को साहिबजादे जोरावर सिंह एवं फतेह सिंह की शौर्य एवं शहादत की 318 वीं वर्षगांठ को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिवस विशेष का प्रमुख उद्देश्य दोनों साहिबजादों के शौर्य एवं शहादत को श्रद्धांजलि देना है।
Veer Bal Diwas : सिख पंथ में सैकड़ों सालों से दिसंबर के आखिरी सप्ताह (21 दिसंबर से 27 दिसंबर) को बलिदानी सप्ताह के रूप में मनाता रहा है। क्योंकि इन्ही दिनों चारों साहिबजादों ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहादत दी थी। इसके गम में गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी ने भी देह त्याग दिया था। इन्हीं दिनों फतेहगढ़ साहिब में शहीदी मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसे देखने लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। सिख घरों में कीर्तन पाठ किये जाते हैं, तथा गुरुद्वारों में पाठ एवं लंगर के आयोजन किये जाते हैं। लोगों को साहिबजादों के शौर्य एवं बलिदान के बारे में बताया जाता है। इस वर्ष इस दिन (26 दिसंबर) को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जायेगा। स्कूलों में वाद-विवाद, निबंध, भाषण एवं पेंटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जायेंगी।
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Veer Bal Diwas : मुगल काल में अकसर दूसरे धर्म के लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कर इस्लाम धर्म में शामिल कर लिया जाता था। इस जबरन धर्म परिवर्तन का सिख पंथ ना केवल विरोध करता था, बल्कि मुगलों से कई बार युद्ध भी किया। गुरु गोविंद सिंह के पिता श्री गुरु तेग बहादुर ने तो हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश तक कटवा दिया था।
Veer Bal Diwas : 1699 में खालसा पंथ की स्थापना के बाद 1704 में जब मुगलों ने हजारों सैनिकों के साथ आनंदपुर साहिब किले पर आक्रमण किया, तब गुरु गोविंद सिंह ने सैनिकों का अनावश्यक रक्त बहाने के बजाय सपरिवार किला छोड़कर चले गये। लेकिन सरसा नदी तट पर मुगल सैनिकों ने उन पर आक्रमण कर दिया। यहां वे परिवार से बिछड़ गये। दोनों बड़े बेटे बची-खुची सेना के साथ चमकौर साहिब पहुंचे, जबकि अन्य दोनों छोटे बेटे (जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह) को साथ लेकर दादी माता गुजरी आगे निकल गये। रास्ते में उन्हें रसोईया गंगू मिला, और परिवार से मिलाने के बहाने वह उन्हें घर ले गया, जहां उसने कुछ मोहरों की लालच में उन्हें नवाब वजीर खान को सौंप दिया। वजीर खान ने उन्हें बुर्ज में कैद कर लिया। यहां माता गुजरी ने दोनों बच्चों को किसी भी कीमत पर धर्म नहीं बदलने की शिक्षा दी।
Veer Bal Diwas : 26 दिसंबर 1704 की सुबह-सवेरे वजीर खान ने दोनों बच्चों को बुलाया और उन्हें इस्लाम धर्म कबूलने का दबाव डाला, जवाब में बच्चों ने बिना भयभीत हुए जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल का जयकारा किया। बच्चों के इस जयकारे से क्रोधित होकर वजीर खान ने सैनिकों को आदेश देकर दोनों बच्चों को जिंदा दीवार पर चुनवा दिया। यह खबर जब बुर्ज में कैद माता गुजरी को मिली तो उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
Veer Bal Diwas : परिवार से बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद जी अपने दोनों बेटों के साथ चमकौर पहुंचे, लेकिन यहां वे पुनः मुगल सैनिकों द्वारा पकड़ लिये गये। वहां उपस्थित सिखों के समूह ने गुरू गोबिंद जी को वहां से निकल जाने को कहा। गुरु गोबिंद सिंह ने दोनों बेटों अजीत सिंह (17 वर्ष) एवं बाबा जुझार सिंह (13 वर्ष) को मुगल सैनिकों से लड़ने को भेजा। दोनों बेटे मुगल सैनिकों पर टूट पड़े। 40 सिखों के साथ दोनों भाइयों ने 10 लाख मुगल सैनिकों से जमकर लोहा लिया, लेकिन 22 दिसंबर 1704 को दोनों साहिबजादे धर्म की रक्षार्थ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।