किसानों की उचित मांगों पर विचार क्यों नहीं कर सकता केंद्र : न्यायालय

किसानों की उचित मांगों पर विचार क्यों नहीं कर सकता केंद्र : न्यायालय

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  • Publish Date - January 2, 2025 / 08:23 PM IST,
    Updated On - January 2, 2025 / 08:23 PM IST

नयी दिल्ली, दो जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र से पूछा कि वह यह क्यों नहीं कह सकता कि उसके दरवाजे खुले हैं और वह फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों की उचित शिकायतों पर विचार करेगा।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इसके अलावा केंद्र से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की ओर से दायर नयी याचिका पर जवाब देने को कहा, जिसमें कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद 2021 में प्रदर्शनकारी किसानों को फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित अन्य मांगों के कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की पीठ ने पूछा, “आपका मुवक्किल यह बयान क्यों नहीं दे सकता कि वह वास्तविक मांगों पर विचार करेगा और हम किसानों की शिकायतों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, हमारे दरवाजे खुले हैं? केंद्र सरकार बयान क्यों नहीं दे सकती?”

इस पर मेहता ने कहा, “शायद न्यायालय को विभिन्न कारकों की जानकारी नहीं है, इसलिए अभी हम खुद को एक व्यक्ति के स्वास्थ्य के मुद्दे तक सीमित रख रहे हैं। केंद्र सरकार प्रत्येक किसान के प्रति चिंतित है।”

डल्लेवाल की ओर से नयी याचिका दायर करने वाली याचिकाकर्ता गुनिंदर कौर गिल से कहा गया कि वे टकराव वाला रुख न अपनाएं, क्योंकि अदालत ने ऐसे विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है।

पीठ ने कहा, “आप प्रस्ताव के अनुपालन के लिए कह रही हैं। हम प्रस्ताव के अनुपालन के लिए कैसे निर्देश दे सकते हैं? आपको रिकॉर्ड पर कुछ और लाना होगा। हम इस पर नोटिस जारी कर रहे हैं। लेकिन कुछ सोचिए। टकराव की ओर न बढ़ें… कृपया टकराव के बारे में न सोचें।”

गिल ने कहा कि यह मुद्दा 2021 में हल हो गया था, जब गारंटी के लिए एक प्रस्ताव अपनाया गया था।

उन्होंने कहा, “मामला पहले ही गारंटी में सुलझ चुका था। प्रस्ताव की आखिरी दो-तीन पंक्तियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह केंद्र सरकार की ओर से गारंटी थी… यह एक प्रतिबद्धता और वादा था, जिसके आधार पर किसानों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। अब, वे (केंद्र) पीछे नहीं हट सकते।”

गिल ने कहा कि इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक के बाद एक समितियां गठित की जा रही हैं।

न्यायालय ने कहा कि उसे समिति पर “पूरा भरोसा” है, जिसकी अध्यक्षता एक पूर्व न्यायाधीश कर रहे हैं, जिनकी जड़ें एक तरह से पंजाब और हरियाणा दोनों के कृषि क्षेत्र में हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हमने पंजाब और हरियाणा के विशेषज्ञों को शामिल किया है, जो कृषिविद्, अर्थशास्त्री और प्रोफेसर हैं। वे सभी विद्वान, तटस्थ लोग हैं और उनके नाम दोनों पक्षों से आए हैं। अब जब समिति बन गई है, तो आप एक मंच के जरिये बातचीत क्यों नहीं कर रहे हैं? हम किसानों से सीधे बातचीत नहीं कर सकते। संभवतः केंद्र सरकार, चाहे अच्छे या बुरे कारण कुछ भी हों, निर्णय लेना उसका काम है।”

पीठ ने याचिका की एक प्रति उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्य सचिव को देने का निर्देश दिया, जो तीन जनवरी को प्रदर्शनकारी किसानों और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत कर सकती है।

न्यायालय ने केंद्र और समिति से डल्लेवाल की ओर से दायर नयी याचिका पर 10 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।

डल्लेवाल केंद्र सरकार पर किसानों की विभिन्न मांगों को स्वीकार करने का दबाव बनाने के लिए 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के बीच खनौरी सीमा पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं।

भाषा प्रशांत पारुल

पारुल