नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) विद्वान और मृदुभाषी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सर्वसम्मति बनाने वाले नेता के तौर पर अपनी प्रतिष्ठा बनाई तथा भारत में आर्थिक सुधार के द्वार खोले।
हालांकि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन को 2005 में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने के लिए उनके दखल ने उनके व्यक्तित्व के एक नए आयाम को प्रदर्शित किया।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा का अनावरण करने जेएनयू परिसर गए सिंह को वाम समर्थित छात्रों ने काले झंडे दिखाए।
इस घटना के बाद विश्वविद्यालय ने छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया तथा कुछ छात्रों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में भी लिया।
एक दिन बाद सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन कुलपति बी.बी. भट्टाचार्य को छात्रों के प्रति नरमी बरतने का सुझाव दिया।
अपने कड़े सत्ता-विरोधी रुख के लिए जाने जाने वाले इस परिसर के दौरे के दौरान सिंह ने फ्रांसीसी दार्शनिक वॉल्टेयर को उद्धृत करते हुए कहा था, “ ‘आप जो कहना चाहते हैं, उससे मैं असहमत हो सकता हूं, लेकिन मैं आपके कहने के अधिकार की मरते दम तक रक्षा करूंगा’।”
सिंह ने अपने संबोधन में कहा था, “विश्वविद्यालय समुदाय का प्रत्येक सदस्य, यदि वह विश्वविद्यालय के योग्य बनने की आकांक्षा रखता है, तो उसे वॉल्टेयर के कथन की सच्चाई को स्वीकार करना होगा। वॉल्टेयर ने कहा था, ‘आप जो कहना चाहते हैं, उससे मैं असहमत हो सकता हूं, लेकिन मैं अपनी मृत्यु तक आपके कहने के अधिकार की रक्षा करूंगा।’ यह विचार एक उदार संस्था की आधारशिला होना चाहिए।”
इस घटना को याद करते हुए जेएनयू के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने कहा, “छात्रों ने उन्हें काले झंडे दिखाए। तत्कालीन कुलपति को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) से फोन आया, जिसमें उनसे छात्रों के साथ नरमी बरतने को कहा गया, क्योंकि विरोध प्रदर्शन करना उनका अधिकार है। इसके बाद छात्रों को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।”
जेएनयू पिछले एक दशक से विरोध प्रदर्शनों का केन्द्र रहा है, तथा 2016 के देशद्रोह विवाद ने परिसर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस छेड़ दी थी।
भट्टाचार्य ने 2016 में एक साक्षात्कार के दौरान 2005 की घटना को याद किया था।
उन्होंने कहा था, “मनमोहन सिंह ने मुझसे कहा था, ‘सर, कृपया नरमी बरतें’। मैंने कहा कि मुझे कम से कम उन्हें चेतावनी तो देनी ही होगी… लेकिन आज समस्या यह है कि छात्रों के साथ संवाद के सूत्र टूट गए हैं।”
बॉलीवुड अभिनेत्री और जेएनयू की पूर्व छात्रा स्वरा भास्कर ने याद किया कि जब यह घटना हुई तब वह विश्वविद्यालय में छात्रा थीं।
भास्कर ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “मुझे एक किस्सा याद है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जेएनयू आए थे। मैं वहां की छात्रा थी। मुझे लगता है कि सिंगूर, नंदीग्राम की घटना हुई थी या शायद यह सीजी (छत्तीसगढ़) में ‘नक्सल विरोधी’ अभियान था। कैंपस में विरोध प्रदर्शन की चर्चा थी। बेशक वहां काफी सुरक्षा व्यवस्था थी, लेकिन वामपंथी छात्र संगठनों, शायद एआईएसए या डीएसयू ने पूरे परिसर में काले झंडे लहराए और दो वामपंथी छात्रों ने नारेबाजी तथा काले झंडे दिखाकर प्रधानमंत्री के भाषण को बाधित किया।”
उन्होंने कहा, “उन्हें तुरंत हटा दिया गया और जाहिर तौर पर निष्कासन नोटिस दिया गया। हमने कुछ दिनों बाद सुना कि पीएमओ से कुलपति को फोन आया और अनुरोध किया गया कि छात्रों को निष्कासित न किया जाए क्योंकि विरोध करना उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे में था! आज की भारतीय राजनीति, नेतृत्व और राजनीतिक माहौल से यह कितना अलग है। यह इस बात का प्रमाण है कि एमएमएस (मनमोहन सिंह) एक महान प्रधानमंत्री थे।”
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, जिस पर 2016 के देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था और जो एक अलग मामले में जेल में है, ने भी इस घटना को साझा किया था।
उसने 2020 में ‘एक्स’ (तब ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा था, “2005 में, जेएनयू में मनमोहन सिंह को उनकी आर्थिक नीतियों के विरोध में काले झंडों का सामना करना पड़ा। यह बड़ी खबर बन गई। प्रशासन ने तुरंत छात्रों को नोटिस भेजा। अगले ही दिन पीएमओ ने हस्तक्षेप किया और प्रशासन से कोई कार्रवाई न करने को कहा क्योंकि विरोध प्रदर्शन छात्रों का लोकतांत्रिक अधिकार है।”
भाषा
प्रशांत मनीषा
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