जब लता और रफी के संगीत कार्यक्रम ने दादरा और नगर हवेली की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया

जब लता और रफी के संगीत कार्यक्रम ने दादरा और नगर हवेली की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया

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  • Publish Date - September 2, 2024 / 03:53 PM IST,
    Updated On - September 2, 2024 / 03:53 PM IST

नयी दिल्ली, दो सितंबर (भाषा) महान गायकों मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर ने दादरा और नगर हवेली की मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह दावा एक नई किताब में किया गया है।

यह पुस्तक मुक्ति आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिहाज से दोनों प्रतिष्ठित गायकों द्वारा 1954 में किए गए संगीत कार्यक्रम का विस्तार से वर्णन करती है जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है।

दादरा और नगर हवेली एक केंद्र शासित प्रदेश है जिस पर क्रमशः 1783 और 1785 में पुर्तगालियों ने कब्जा कर लिया था। एक सशस्त्र क्रांति होने और 2 अगस्त 1954 को सिलवासा में तिरंगा फहराये जाने के बाद ही पुर्तगालियों का शासन समाप्त हुआ।

दोनों परिक्षेत्रों को औपचारिक रूप से 1961 में गोवा और दमन दीव के साथ भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन गोवा की मुक्ति के विपरीत, दादरा और नगर हवेली के मामले में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं किया गया था।

लेखक नीलेश कुलकर्णी द्वारा लिखित पुस्तक ‘अपराइजिंग: द लिबरेशन ऑफ दादरा एंड नागर हवेली’ में इस क्षेत्र की मुक्ति के लिए गायकों की भागीदारी के कारणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह सब तब शुरू हुआ जब संगीत निर्देशक और स्वतंत्रता सेनानी सुधीर फड़के ने सशस्त्र क्रांति के लिए धन जुटाने में मदद के लिहाज से लता मंगेशकर से मिलने का फैसला किया।

पुस्तक के अनुसार, लता मंगेशकर पहले इस योजना से सहमत नहीं थीं। लेकिन जब फड़के और उनके दोस्तों ने कहा कि दादरा और नगर हवेली की मुक्ति ‘गोवा की स्वतंत्रता की प्रस्तावना’ ही है तो वह तैयार हो गईं।

लता मंगेशकर का गोवा के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव था और पुर्तगाली लोग उत्तरी गोवा के मंगेशी गांव में उनके कुल देवता भगवान मंगेश के मंदिर में आने वाले भक्तों को परेशान करते थे।

पुस्तक में लिखा गया है, ‘‘उनकी आंखों में अचानक आंसू भर आए… परिवार ने अपना उपनाम गांव के नाम पर रखा था। पुर्तगाली नियमित रूप से मंदिर में आने वाले भक्तों को परेशान करते थे, और इस बारे में कुछ न कर पाने की हताशा ने उन्हें तुरंत इस योजना के पक्ष में ला दिया।’’

किताब में लता के हवाले से कहा गया है, ‘‘आप मुझे मेरे भगवान मंगेश की सेवा करने देंगे, उन्होंने नम आंखों से कहा। काश, मैं आकर आपके पक्ष में लड़ पाती, लेकिन चूंकि मैं ऐसा नहीं कर सकती, इसलिए मैं संसाधन जुटाने में आपकी मदद करूंगी। आप मुझे तारीख बताइए और मैं वहां पहुंच जाऊंगी।’’

लता मंगेशकर के कार्यक्रम में आने की खुशी आयोजकों के लिए तब दोगुनी हो गई जब उन्होंने सुझाव दिया कि आयोजकों को मोहम्मद रफी को उनके साथ गाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।

रफी ने उस समय बांद्रा में नवनिर्मित महबूब स्टूडियो में फड़के और उनकी टीम से मुलाकात की थी और तुरंत ‘हां’ कह दिया।

लेखक ने लिखा है कि यह बैठक, जो 10 मिनट तक चलने वाली थी, एक घंटे तक चली, क्योंकि रफी ने एक के बाद एक सवाल पूछे कि समूह अपनी योजनाओं को लागू करने की योजना कैसे बना रहा है।

दुर्भाग्य से, कॉन्सर्ट योजना के अनुसार नहीं हुआ क्योंकि अप्रैल 1954 में लता मंगेशकर के साथ एक सड़क दुर्घटना हो गई, जिस दिन उन्हें प्रस्तुति देनी थी। गायिका ने दुर्घटना के बावजूद पहुंचने की कोशिश की, लेकिन तब तक कार्यक्रम रद्द हो चुका था।

किताब में बताया गया है, ‘‘लता और रफी आखिरकार रात 11.30 बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि वहां अंधेरा था और सब सुनसान था… वह उस रात फड़के परिवार के आवास पर ठहरीं और जाने से पहले वादा किया कि अगली बार जिस भी तारीख को संगीत कार्यक्रम रखा जाएगा, वह अपने पहले से तय कार्यक्रम रद्द कर उसमें शामिल होंगी।’’

संगीत कार्यक्रम अंततः 2 मई को उसी स्थान पर आयोजित किया गया। कार्यक्रम सफल रहा। हालांकि, कार्यक्रम स्थल पर पहले की तरह भीड़ नहीं थी, फिर भी, लेखक के अनुसार, इससे काफी धन प्राप्त हुआ।

कुलकर्णी ने यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पिछले दिनों किताब के विमोचन के मौके पर कहा,, ‘‘संगीत कार्यक्रम की आय से, उन्होंने (स्वतंत्रता सेनानियों ने) पूरी योजना बनाई और वे हैदराबाद के काले बाजार से पांच राइफल और तीन पिस्तौल खरीदने के लिए सक्षम हुए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘और इन पांच राइफल और तीन पिस्तौल के साथ, उनमें से अधिकतम 29 लोगों ने 300 से अधिक सशस्त्र पुर्तगालियों पर हमला किया और उन्हें दादरा और नगर हवेली से बाहर निकाल दिया।’’

वेस्टलैंड बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘अपराइजिंग: द लिबरेशन ऑफ दादरा एंड नागर हवेली’ में इस अल्पज्ञात इतिहास के अंश को चित्रित करने के लिए प्रतिभागियों के वंशजों और स्वयं कुछ प्रतिभागियों के साक्षात्कारों के साथ ही समाचार पत्रों, अभिलेखों, पत्रों और डायरी की प्रविष्टियों का उपयोग किया गया है।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा