(अनिल भट्ट)
आर एस पुरा (जम्मू), एक अक्टूबर (भाषा) रुलदू राम की खुशी का तब कोई ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने 90 साल की आयु में पहली बार वोट डाला। विभाजन के दौरान पाकिस्तान से पलायन करने के लगभग आठ दशक बाद वह पहली बार मतदान करने आये थे।
वह सीमावर्ती शहर आर एस पुरा में पश्चिमी पाकिस्तान से आये उन सैकड़ों शरणार्थियों में शामिल थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पहली बार मतदान किया। इससे पहले मुझे वोट देने का अधिकार नहीं था। हम 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आये थे।’’
यह उन लोगों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, जिन्हें पिछले 75 वर्ष से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों के विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 1.5 से दो लाख लोग तीन समुदायों – पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी (डब्ल्यूपीआर), वाल्मीकि और गोरखा- के सदस्यों को अंततः अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद मूल निवासी का दर्जा प्राप्त हुआ है।
अब वे जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी बन गए हैं और उन्हें विधानसभा चुनाव में वोट देने, रोजगार, शिक्षा और भूमि स्वामित्व का अधिकार मिल गया। इससे पहले वे केवल लोकसभा चुनाव में ही वोट दे सकते थे।
पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी कार्रवाई समिति के अध्यक्ष लाभा राम गांधी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारे लिए आज का दिन राष्ट्रीय पर्व है। यह इन तीनों समुदायों, खासतौर पर पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के लिए एक यादगार दिन है। आज अपने जीवनकाल में पहली बार मतदान करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करके हम जम्मू-कश्मीर में वास्तविक लोकतंत्र का हिस्सा बन गए हैं।’’
शरणार्थी नेता गांधी (63) का नाम सांबा के नुंदपुर मतदान केंद्र की मतदाता सूची में है। उन्होंने कहा कि इससे भविष्य में समुदाय से विधायक चुनने का रास्ता साफ हो गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘अनुच्छेद 370 को हटाने का श्रेय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को जाता है, जिसकी वजह से हम जम्मू-कश्मीर के मतदाता बन पाए। हम उनके आभारी हैं।’’
रिकार्ड के अनुसार 1947 में विभाजन के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करने के बाद जम्मू के विभिन्न भागों में 5,764 डब्ल्यूपीआर परिवार बस गए थे। इन परिवारों की संख्या बढ़कर 22,000 से अधिक परिवार या डेढ़ से दो लाख व्यक्ति हो गई है।
जम्मू-कश्मीर में अंतिम चरण के मतदान से पहले, पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों ने आर एस पुरा के पूर्णपिंड क्षेत्र के बाजारों में जश्न मनाया। इस मौके पर वे मंदिर गए, पूजा-अर्चना की और एक-दूसरे को मिठाइयां दीं। सांबा और अखनूर में भी जश्न का ऐसा ही नजारा देखने को मिला।
मोहिंदर कुमार का परिवार पाकिस्तान के झेलम शहर से आकर जम्मू में बस गया था। वह अपने बेटे अंकित के साथ गांधी नगर मतदान केंद्र पर वोट डालने पहुंचे।
कुमार ने कहा कि मतदान का मौका उनके लिए राष्ट्रीय त्योहार की तरह है।
बीस वर्षीय त्रिशिका और उनकी दादी सर्वेश्वरी देवी ने अखनूर के सीमावर्ती क्षेत्र में एक मतदान केंद्र पर मतदान किया।
जम्मू गोरखा नगर में गोरखा समुदाय के लगभग दो हजार सदस्य अब मतदान का अधिकार मिलने से बहुत उत्साहित हैं।
उनके पूर्वज दशकों पहले नेपाल से जम्मू-कश्मीर में डोगरा सेना में सेवा करने के लिए आए थे। आज भी, ज्यादातर परिवारों में कम से कम एक सदस्य युद्ध में भाग ले चुका है।
सुरेश छेत्री ने कहा, ‘‘विधानसभा चुनाव में वोट देना मेरे और मेरे परिवार के लिए एक सपने के सच होने जैसा था। हम यहां हमारी किस्मत बदलने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृह मंत्री अमित शाह जी का आभार व्यक्त करते हैं। अनुच्छेद 370 को रद्द करने के उनके साहसिक फैसले की बदौलत हम अब जम्मू-कश्मीर के नागरिक हैं।’’
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव