उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ‘जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे’ पर चिंता व्यक्त की |

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ‘जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे’ पर चिंता व्यक्त की

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ‘जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे’ पर चिंता व्यक्त की

:   Modified Date:  October 15, 2024 / 04:22 PM IST, Published Date : October 15, 2024/4:22 pm IST

जयपुर, 15 अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में ‘जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे’ पर चिंता जताते हुए मंगलवार को कहा कि इसके परिणाम परमाणु बम से कम गंभीर नहीं हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की संस्कृति, समावेशिता और विविधता में एकता को जनसांख्यिकीय अव्यवस्थाओं द्वारा अस्थिर करने की कोशिश हो रही है।

वह यहां बिड़ला ऑडिटोरियम में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘जनसांख्यिकीय अव्यवस्था कुछ क्षेत्रों को राजनीतिक किलों में बदल रही है जहां चुनावों का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। यह बेहद चिंताजनक है कि इस रणनीतिक बदलाव से कुछ क्षेत्र कैसे प्रभावित हुए हैं, जिससे वे अभेद्य गढ़ों में बदल गए हैं जहां लोकतंत्र ने अपना सार खो दिया है।’’

आधिकारिक बयान के अनुसार धनखड़ ने कहा कि ‘‘स्वाभाविक जनसांख्यिकीय बदलाव’’ कभी भी परेशान करने वाला नहीं होता किन्तु किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय बदलाव एक भयावह दृश्य पेश करता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘पिछले कुछ दशकों में इस जनसांख्यिकीय बदलाव का विश्लेषण करने से एक परेशान करने वाले पैटर्न का पता चलता है जो हमारे मूल्यों और हमारे सभ्यतागत लोकाचार एवं हमारे लोकतंत्र के लिए चुनौती पेश करता है।’’

उन्होंने कहा कि यदि इस बेहद चिंताजनक चुनौती से व्यवस्थित ढंग से नहीं निपटा गया तो यह राष्ट्र के लिए अस्तित्व संबंधी खतरे में बदल जाएगा।

उप राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ऐसा दुनिया में हुआ है। मुझे उन देशों का नाम लेने की जरूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार के कारण पूरी तरह अपनी पहचान 100 प्रतिशत खो दी है।’’

उन्होंने कहा कि साझी सांस्कृतिक विरासत पर हमला किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि साझा सांस्कृतिक विरासत पर हमला करने की कोशिश करने वाली ताकतों पर ‘‘वैचारिक और मानसिक प्रतिघात’’ होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसे हमारी कमजोरी के तौर पर दिखाने की कोशिश की जा रही है। इसके तहत देश को बर्बाद करने की साजिश है। ऐसी ताकतों पर वैचारिक और मानसिक प्रतिघात होना चाहिए।’’

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत को परिभाषित करने वाली समावेशिता को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘हम बहुसंख्यक के रूप में सभी का स्वागत करते रहे हैं। हम बहुसंख्यक के रूप में सहिष्णु हैं। हम बहुमत के रूप में एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र उत्पन्न करते हैं।’’

उन्होंने इसकी तुलना ‘‘दूसरे प्रकार के बहुमत’’ से की जो क्रूर और निर्दयी है तथा अपने कामकाज में लापरवाह है और जो दूसरे पक्ष के मूल्यों को रौंद रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘स्वार्थ से प्रेरित ये तत्व, तुच्छ पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए राष्ट्रीय एकता का बलिदान दे रहे हैं। वे हमें जाति, पंथ और समुदाय के आधार पर बांटना चाहते हैं और ये ताकतें भारत के सामाजिक सद्भाव को प्रभावित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘राजनीति में कुछ लोगों को अगले दिन के अखबार की हेडलाइन के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने या कुछ छोटे-मोटे पक्षपातपूर्ण हित साधने में कोई कठिनाई नहीं होती। हमें इस परिदृश्य को बदलने के लिए इस दुस्साहस को बेअसर करना होगा।’’

उपराष्ट्रपति ने भारत की तेजी से वृद्धि और विकास पर चर्चा करते हुए कहा, ‘‘हमारी विकास यात्रा दुनिया को आश्चर्यचकित कर रही है। हालांकि, यदि सामाजिक एकता भंग होती है, यदि राष्ट्रवाद की भावना समाप्त हो जाती है, या भीतर और बाहर राष्ट्र-विरोधी ताकतें देश में विभाजन का बीज बो देती हैं तो यह आर्थिक वृद्धि भी नाजुक साबित होगी है। हम सभी को इन खतरों के प्रति सचेत रहना चाहिए।’’

उन्होंने कुछ लोगों द्वारा कानून के शासन की अवहेलना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘एक समय था जब कुछ लोग सोचते थे कि वे कानून से ऊपर हैं। उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त था, लेकिन आज चीजें बदल गई हैं। आज भी हम संवैधानिक पदों पर ऐसे जिम्मेदार लोगों को देखते हैं जिन्हें न कानून की परवाह है, न देश की परवाह और कुछ भी बोलते हैं। ये भारत की प्रगति के विरोधी ताकतों द्वारा रची गई एक भयावह साजिश है।’’

धनखड़ ने कहा, ‘‘हम राजनीतिक सत्ता के लिए पागलपन की हद तक नहीं जा सकते। राजनीतिक शक्ति एक पवित्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से लोगों से उत्पन्न होनी चाहिए।’’

भाषा पृथ्वी खारी

खारी

 

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