उपराष्ट्रपति ने आईआईटी कानपुर के विद्यार्थियों से पराली की समस्या का समाधान खोजने का आह्वान किया

उपराष्ट्रपति ने आईआईटी कानपुर के विद्यार्थियों से पराली की समस्या का समाधान खोजने का आह्वान किया

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  • Publish Date - December 1, 2024 / 09:35 PM IST,
    Updated On - December 1, 2024 / 09:35 PM IST

कानपुर, एक दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को यहां आईआईटी कानपुर के विद्यार्थियों से विकास के लिए स्मार्ट, समाधान-उन्मुख व सतत नवाचारों पर काम करने और पराली जलाने की समस्या का समाधान खोजने का आह्वान किया।

धनखड़ ने कानपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के ‘भारत के विकास में नवाचार की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक के क्षेत्रों में समाधान उन्‍मुख नवाचार के लिए वास्तविक दुनिया की समस्याओं को समझना आवश्यक है।

उन्होंने आत्मीयता दर्शाते हुए कहा, “मेरे युवा मित्रों, इसके लिए आरामदायक क्षेत्रों से बाहर निकलना और पूरे भारत में विविध हितधारकों के साथ जुड़ना आवश्यक है। मैं इस पर ध्यान केंद्रित करूंगा क्योंकि मैं आईआईटी कानपुर से एक भावुक अपील करने आया हूं।”

धनखड़ ने विद्यार्थियों से कहा, “मैं बहुत आभारी रहूंगा अगर आईआईटी कानपुर किसानों के कल्याण को मिशन मोड में ले सके और कुछ समस्याएं तो बहुत स्पष्ट हैं, जैसे पराली जलाना। कृपया अपने दिमाग को खंगालें, समाधान खोजें। आज हमारा किसान वस्तुतः तनावग्रस्त है क्योंकि किसान ने नवाचार के लाभों का परीक्षण नहीं किया है।”

रविवार को जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, धनखड़ ने अपने संबोधन में कहा कि कभी भारत एक अलग देश था लेकिन अब यह उम्मीद और संभावनाओं वाला देश है।

उन्होंने कहा कि भारत अब आर्थिक उन्नति पर है और अब यह अभूतपूर्व बुनियादी ढांचे वाला देश है।

धनखड़ ने कहा कि अब भारत ऐसा देश है, जिसका समुद्र, जमीन, आकाश या अंतरिक्ष में प्रदर्शन वैश्विक प्रशंसा प्राप्त कर रहा है।

उप राष्‍ट्रपति ने कहा, “हमारे देश में जो परिवर्तन हुआ है, वह काफी हद तक इन संस्थानों के पूर्व विद्यार्थियों की देन है। ऐतिहासिक साक्ष्य हमारे सामने हैं कि किसी भी देश ने तकनीकी क्रांतियों का नेतृत्व किए बिना महानता हासिल नहीं की है।”

उन्होंने कहा, “मैंने अक्सर संस्थानों पर ध्यान केंद्रित किया है कि शोध केवल शोध के लिए नहीं होना चाहिए। एक शोध पत्र केवल अकादमिक प्रशंसा के लिए नहीं होता है। एक शोध पत्र के आधार में कुछ ऐसा होना चाहिए जो आम जनता के लिए परिवर्तनकारी हो।”

भाषा आनन्द जितेंद्र

जितेंद्र