Vat-Savitri Vrat : नई दिल्ली। आने वाले 30 मई को सुहाग के लिए रखे जाने वाली सबसे बड़ी पूजा ‘वट सावित्री’ का त्यौहार है। इस दिन सुहागिनें अपने पति के लम्बी उम्र के लिए विधिविधान से पूजा-अर्चना करती है। शास्त्रों के विधान के अनुसार ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के तीन दिन पहले वट सावित्री का व्रत रखा जाता है।
इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके साथ ही सत्यवान-सावित्री की कथा सुनी जाती है जो कि एक नारी की पवित्रता और दृढ़ता की कथा है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य की कामना के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जन्म कुंडली के वैधव्य (विधवा) योग का निवारण होता है। ये पवित्र और कठोर व्रत पति के प्राणों पर आए संकट को टालता है।
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Vat-Savitri Vrat : हिन्दू पौराणिक कथाओं में वट यानी बरगद को देव वृक्ष माना गया हैं। यह वृक्ष कभी नष्ट नहीं होता है। वर्षों तक जीने वाले वट वृक्ष की रक्षा देवों के जरिए की जाती है। कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में भगवान शिव का वास होता है। सावित्री ने भी वट वृक्ष की पूजा अपने पति की दीर्घायु के लिए की थी।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर जल से प्रक्षालित वट के तने पर रोली का टीका लगाएं। इसके साथ ही पूजा के दौरान चना, गुड़, घी चढ़ाने से भगवान झष होते हैं। वृक्ष के नीचे तने से दूर घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें। वट के पेड़ की पत्तियों की माला पहनकर कथा सुनें। वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए 108 बार या यथाशक्ति वट वृक्ष के मूल को हल्दी रंग के सूत से लपेटें। फिर माता सावित्री का ध्यान करते हुए वृक्ष को जल अर्पित करें।
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Vat-Savitri Vrat : वट को अर्घ्य देने के दौरान ‘अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते, पुत्रान पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणाध्यं नमोस्तुते।’ मंत्र का जरूर पाठ करें। दरअसल, ज्योतिषीय दृष्टि से यह व्रत अधिक महत्वपूर्ण है। जिसके प्रभाव से व्यक्ति की कुंडली के वैधव्य योग का अंत हो जाता है। वट सावित्री का व्रत वैवाहिक व दांपत्य जीवन को सुखी बनाने तथा अल्पायु योग को दीर्घायु में बदलने का सुगम साधन है। इसलिए शादीशुदा स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु व अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
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हिन्दू शास्त्रों की पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मार्कण्डेय ऋषि ने भगवान से उनकी माया का दर्शन कराने का अनुरोध किया। तब भगवान ने प्रलय का दृश्य दिखाकर वट वृक्ष के पत्ते पर ही अपने पैर के अंगूठे को चूसते हुए बाल स्वरूप में दर्शन दिए थे। यह दृष्टांत वटवृक्ष का आध्यात्मिक महत्व दर्शाता है। इसी तरह वनवास के समय भगवान श्री राम ने कुंभज मुनि के परामर्श से माता जानकी एवं भ्राता लक्ष्मण सहित पंचवटी में निवास कर वटवृक्ष की गरिमा को और अधिक बढ़ा दिया।