वाजपेयी की 100वीं जयंती : देश में उनकी विरासत आज भी जीवित

वाजपेयी की 100वीं जयंती : देश में उनकी विरासत आज भी जीवित

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  • Publish Date - December 24, 2024 / 06:39 PM IST,
    Updated On - December 24, 2024 / 06:39 PM IST

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 30 दिसंबर 1984 में मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित भाजपा अधिवेशन के उद्घाटन सत्र को अपनी चिरपरिचित शैली में संबोधित करते हुए भविष्यवाणी की थी, ‘‘ अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’’।

वाजपेयी की जन्म शताब्दी बुधवार को है और उन्होंने करीब चार दशक पहले अपने संबोधन में जो कहा था वह सच साबित हुई है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में लौटी है और कमल पूरी तरह खिल चुका है।

यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के सांस्कृतिक एजेंडे को राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बनाया, तो वाजपेयी ने पार्टी को उस समय इसे केन्द्र में लाने में मदद की, जब उसके सांस्कृतिक एजेंडे को अभिशाप माना जाता था।

एक राजनेता और अद्वितीय वक्ता वाजपेयी भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्हें सभी राजनीतिक दलों से सम्मान और स्नेह मिला तथा वे अपनी जन्मजात लोकतांत्रिक भावना के साथ मजबूती से सदैव खड़े रहे जो उन्होंने दशकों तक विपक्ष में रहकर, शक्तिशाली क्षत्रपों से भरी राजनीति में विकसित की थी।

देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे मोदी राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन राजनीति के मूल सूत्रधार थे। वाजपेयी ने गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक पूर्ण कार्यकाल तक चलाया और इस दौरान उन्होंने कुछ सबसे बड़े राष्ट्रीय संकटों से भी निपटा, जिनमें 1999 में विमान अपहरण और 2001 में संसद पर आतंकवादी हमला शामिल थे, और दोनों ही घटनाओं का पाकिस्तान से सीधा संबंध था।

उनकी सरकार द्वारा दोनों घटनाओं से निपटने के तौर तरीकों को लेकर कुछ वर्गों द्वारा आलोचना की गई। इनमें दक्षिणपंथी संगठन भी शामिल थे, जिन्हें वैचारिक रूप से भाजपा से संबद्ध माना जाता है, लेकिन उनके सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंडे को आगे न बढ़ाने के कारण उनके प्रति कम मित्रवत माना जाता है। हालांकि, उनकी स्थिति ने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें किसी राजनीतिक खतरे या लोकप्रिय प्रतिक्रिया का सामना न करना पड़े।

वाजपेयी की सरकार अप्रैल 1999 में लोकसभा में एक वोट से गिर गई थी, तब उन्होंने एक कार्यवाहक सरकार के प्रमुख के रूप में कारगिल में पाकिस्तान की घुसपैठ का दृढ़ता से सैन्य और कुशल कूटनीतिक जवाब दिया जिसे प्रशंसा मिली और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)को अधिक स्थिर बहुमत मिला, जिससे उनकी सरकार का पूर्ण कार्यकाल सुनिश्चित हुआ।

वाजपेयी के छह साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने कहा कि वह एक उत्कृष्ट सांसद थे, जिन्होंने 1957 में पहली बार लोकसभा में कदम रखा और लगातार ‘‘संसदीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने’’ में अपना योगदान दिया। इसके साथ ही सरकार के मुखिया के रूप में उन्होंने ‘सुशासन’ को एजेंडे के केंद्र में रखा।

टंडन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सुशासन उनका ऐतिहासिक योगदान था। उन्होंने विभिन्न दलों के गठबंधन का नेतृत्व किया और उन्हें एकजुट रखा, साथ ही ऐसी नीतियां अपनाईं जिनसे देश को हर क्षेत्र में मदद मिली।’’ उन्होंने वाजपेयी के नेतृत्व में शुरू हुईं सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग परियोजनाओं का हवाला दिया।

यह उनके द्वारा शुरू सुधारों, विनिवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को का नतीजा था, जिससे सात से आठ प्रतिशत की विकास दर का विचार संभव हो सका और उनकी सरकार ने 2003 में एफआरबीएम अधिनियम के माध्यम से राजकोषीय विवेक का कानून बनाया।

हालांकि, सुधारों का लाभ थोड़ा देर से मिला और भाजपा की राजनीतिक गलतियां, विशेष रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में, तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतीशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा ग्रामीण संकट का फायदा उठाने के कारण 2004 में वाजपेयी को अपनी सेहत में गिरावट के बीच करारी हार का सामना करना पड़ा।

उनकी सार्वजनिक उपस्थिति सीमित थी, उन्होंने आखिरी बार 2007 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए प्रचार किया था, लेकिन धीरे-धीरे ‘डिमेंशिया’ के कारण वे सार्वजनिक मंच से ओझल हो गए। 2018 में उनका निधन हो गया।

मोदी सरकार ने उनकी जयंती को ‘सुशासन दिवस’ ​​के रूप में मनाना शुरू किया और 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।

अपने वैश्विक दृष्टिकोण में परंपरा और आधुनिकता का प्रभावशाली मिश्रण रखने वाले वाजपेयी 1951 में जनसंघ की स्थापना के समय हिंदुत्व संगठन द्वारा भेजे जाने से पहले एक पूर्णकालिक आरएसएस कार्यकर्ता थे। उन्होंने आजीवन आरएसएस के मूल्यों का पालन किया, हालांकि वे कभी-कभी इसके तरीकों से नाराज भी होते थे।

वाजपेयी ने केवल एक बार खुले तौर पर हिंदुत्व के ध्रुवीकरण की निंदा तब की थी जब 1992 में बाबरी ढांचा ध्वस्त हुआ था। लेकिन उनके इस रुख को राजनीतिक व्यावहारिकता माना गया, जो 1984 के चुनावों में मात्र दो सीटें प्राप्त करने के बाद भाजपा द्वारा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए आवश्यक था।

पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के उनके भावुक प्रयासों के परिणामस्वरूप फरवरी 1999 में उनकी बस से लाहौर की शानदार यात्रा हुई और फिर 2001 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर सम्मेलन की मेजबानी की गई, लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली।

वाजपेयी ने जम्मू-कश्मीर समस्या को हल करने के लिए ‘इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत’ का जो नारा दिया, उससे उन्हें मुस्लिम बहुल घाटी में आजीवन प्रशंसक मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2018 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस नारे को याद किया ताकि वहां के लोगों तक पहुंच बनाई जा सके।

वाजपेयी एक मंत्रमुग्ध करने वाले वक्ता थे, जिन्हें भारतीय परंपराओं और इतिहास की गहरी जानकारी थी। संसद में भाषण देने के साथ ही वह रामचरितमानस पाठ भी आकर्षक तरीके से करते थे।

टंडन ने बताया कि तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद सी एन अन्नादुरई एक बार वाजपेयी का भाषण सुनने के लिए लोकसभा में दौड़े चले गए थे, जबकि उन्हें हिंदी ज्यादा समझ में नहीं आती थी।

आजीवन अविवाहित रहे वाजपेयी पहली बार 1957 (दूसरा आम चुनाव) में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा के लिए चुने गए। संसद में उनके पहले भाषण ने उनके साथियों और सहयोगियों को इतना प्रभावित किया कि कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक विदेशी अतिथि से वाजपेयी का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा’’।

वाजपेयी 1977 में जब जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री बने, तो उन्होंने साउथ ब्लॉक से नेहरू की तस्वीर हटाने पर अपनी असहमति जताई और उसे फिर से स्थापित करवाया, जो कि द्विपक्षीयता का सबूत था। मंत्री के तौर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रभावशाली और पहला हिंदी भाषण दिया।

प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी ने मई 1998 में एक रणनीतिक कदम उठाते हुए परमाणु परीक्षण का आदेश दिया, साथ ही भविष्य में परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने की घोषणा भी की। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता की।

वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में एक स्कूल शिक्षक कृष्ण बिहारी वाजपेयी और कृष्णा देवी के घर हुआ था।

भाषा धीरज माधव

माधव