उत्तराखंड: भारतीय वन्यजीव संस्थान ने हिमालयी धामों में भीड़ नियंत्रण व्यवस्था का अध्ययन शुरू किया

उत्तराखंड: भारतीय वन्यजीव संस्थान ने हिमालयी धामों में भीड़ नियंत्रण व्यवस्था का अध्ययन शुरू किया

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  • Publish Date - December 4, 2024 / 09:15 PM IST,
    Updated On - December 4, 2024 / 09:15 PM IST

देहरादून, चार दिसंबर (भाषा) उत्तराखंड में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने की व्यवस्था बनाने के लिए अध्ययन शुरू किया है।

संस्थान के वैज्ञानिक और परियोजना के प्रमुख अन्वेषक भूपेंद्र सिंह अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इस अध्ययन के कई उददेश्य हैं, जिनमें धामों को जाने वाले पैदल रास्ते में पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध आधारभूत संरचनाओं का आंकलन तथा धामों तक जाने वाले वाहनों की क्षमता का अध्ययन शामिल है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में स्थित एक अन्य प्रमुख धाम बदरीनाथ इस अध्ययन का हिस्सा नहीं है।

अधिकारी ने बताया, “इस अध्ययन की जरूरत थी क्योंकि मंदिरों में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या शुरूआती दिनों में ही चार से पांच लाख पहुंच जाती है। हम देखेंगे कि इन मंदिरों के लिए जाने वाले रास्तों में मौजूदा आधारभूत संरचनाएं इतनी भीड़ को समायोजित करने के लिए पर्याप्त है या नहीं।”

उन्होंने बताया कि अध्ययन से यह भी पता लगाया जाएगा कि क्या पर्यावरणीय नियमों का पालन किया जा रहा है।

अधिकारी ने बताया, “ हम पता लगाएंगे कि उच्च हिमालयी क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान न पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय सुरक्षा कदम उठाए जा रहे हैं या नहीं।”

उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में अल्पाइन घास के मैदान हैं, जहां दुर्लभ वनस्पतियां पायी जाती हैं लेकिन घोड़ा-खच्चर संचालक अपने जानवरों को इन घास के मैदानों में छोड़ देते हैं, जो हिमालयी पारिस्थितकीय तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाने वाली इन वनस्पतियों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

अधिकारी ने बताया कि सोशल मीडिया पर घोड़ों और खच्चरों के कथित शोषण से संबंधित वीडियो भी अपलोड किए जा रहे हैं।

उन्होंने बताया, “उदाहरण के लिए बीमार होने पर भी घोड़ा-खच्चर संचालकों द्वारा उनका उपयोग श्रद्धालुओं को ढोने के लिए किया जाता है और जब उनकी मृत्यु हो जाती है तो उन्हें दफनाने की बजाय उन्हें जल निकायों में फेंक दिया जाता है।”

अधिकारी ने इस संबंध में कहा कि स्थानीय लोगों से बातचीत कर मामले की सच्चाई के बारे में भी पता किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि अध्ययन में मंदिर क्षेत्रों में लागू ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन नियमों की भी समीक्षा की जाएगी तथा इस संबंध में रिपोर्ट तैयार करने में लगभग एक माह का समय लगेगा।

वैज्ञानिक ने बताया कि संस्थान को यह काम राज्य सरकार ने हाल के वर्षों में इन मंदिरों में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के मद्देनजर अक्टूबर-नवंबर में सौंपा है।

अधिकारी ने बताया कि इस वर्ष चारधाम यात्रा पर करीब 48 लाख श्रद्धालु आए जबकि पिछली बार यह संख्या 54 लाख थी।

भाषा दीप्ति जितेंद्र

जितेंद्र