नैनीताल, सात जनवरी (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बलुआ पत्थर खनन के कारण मकानों को हुए नुकसान की रिपोर्ट मिलने के बाद राज्य के बागेश्वर जिले में सभी खनन गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और समस्या की ओर से आंखें मूंद लेने के लिए राज्य के अधिकारियों को फटकार लगाई है।
मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त अदालत आयुक्त मयंक जोशी और शौरिन धूलिया द्वारा इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद छह जनवरी को यह निर्देश दिया।
रिपोर्ट में जिले के बांदा क्षेत्र के गांवों में मकानों की दीवारों पर दरारें आने की बात कही गई है। उच्च न्यायालय ने भूविज्ञान एवं खनन विभाग के निदेशक के अलावा औद्योगिक विकास विभाग के सचिव और जिलाधिकारी को नौ जनवरी को तलब कर उनका जवाब मांगा है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट के निष्कर्ष न केवल चिंताजनक हैं, बल्कि चौंकाने वाले भी हैं। अदालत ने कहा, ‘‘रिपोर्ट और तस्वीरें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि क्षेत्र में अवैध तरीके से खनन किया जा रहा है।’’
अदालत ने कहा कि स्थानीय प्रशासन ‘‘इस उल्लंघन पर आंखें मूंदे हुए है।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया यह प्रदर्शित होता है कि खनन कार्य जारी रहने से मकानों को नुकसान पहुंचा है, आगे भूस्खलन की आशंका है और लोगों की जान जा सकती है।
अदालत ने कहा कि अधिकारी गांवों की पहाड़ी के निचले हिस्से में खनन कार्य की अनुमति दे रहे हैं जबकि ऊपर बस्तियां हैं।
उच्च न्यायालय खनन गतिविधियों के कारण मकानों की दीवारों में दरारें पड़ने की खबरों का स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रहा था। खबरों में कहा गया कि बागेश्वर की कांडा तहसील के कई गांवों में मकानों की दीवारों पर दरारें पड़ गई हैं।
इससे पहले कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की पीठ ने ग्रामीणों की समस्याओं को समझने में न्यायालय की सहायता के लिए अदालत आयुक्तों की नियुक्ति की थी और उन्हें रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। अदालत इस मामले की सुनवाई नौ जनवरी को करेगी।
भाषा आशीष पवनेश
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