नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दोषियों की समय-पूर्व रिहाई सुनिश्चित करने के लिए वकीलों द्वारा अदालत के समक्ष और याचिकाओं में भी बार-बार झूठे बयान देने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि जब इस तरह के मामले सामने आते हैं, तो ‘‘हमारा विश्वास डगमगा जाता है’’।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने हालिया आदेश में अपनी पीड़ा बयां की है और कहा है कि पिछले तीन हफ्तों में उनके सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें झूठी दलीलें दी गयी हैं।
पीठ ने हाल ही में अपलोड किए गए 10 सितंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत में बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिनमें स्थायी छूट न दिए जाने की शिकायत की गई है। पिछले तीन हफ्तों के दौरान, यह छठा या सातवां मामला है, जिसमें याचिका में स्पष्ट रूप से झूठे बयान दिए गए हैं।’’
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत में विविध मामलों की सुनवाई के दिन प्रत्येक पीठ के समक्ष 60 से 80 मामले सूचीबद्ध होते हैं और न्यायाधीशों के लिए अदालत के समक्ष सूचीबद्ध प्रत्येक मामले के प्रत्येक पृष्ठ को पढ़ना संभव नहीं होता है, हालांकि प्रत्येक मामले को बहुत ही सावधानीपूर्वक देखने का प्रयास किया जाता है।
पीठ ने कहा, ‘हमारी प्रणाली विश्वास पर काम करती है। जब हम मामलों की सुनवाई करते हैं तो हम बार के सदस्यों पर भरोसा करते हैं, लेकिन जब हम इस तरह के मामलों का सामना करते हैं, तो हमारा विश्वास डगमगा जाता है।’
पीठ ने कहा कि ऐसे ही एक मामले से निपटने के दौरान उसे पता चला कि न केवल सजा में छूट का अनुरोध करते हुए रिट याचिका में झूठे बयान दिए गए हैं, बल्कि इस अदालत के समक्ष भी झूठी दलीलें दी गयी हैं, जिसे 19 जुलाई, 2024 के आदेश में दर्ज किया गया है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के तत्कालीन एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की ओर से जेल अधिकारियों को 15 जुलाई, 2024 को प्रेषित ईमेल में फर्जी बयान दोहराए गए हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि वह इस तथ्यात्मक स्थिति से अवगत थे, लेकिन 19 जुलाई, 2024 को एक फर्जी बयान दिया गया कि सभी याचिकाकर्ताओं (दोषियों) की फरलो की अवधि समाप्त नहीं हुई है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक उपयुक्त मामला है, जहां जुर्माना लगाया जाना चाहिए, लेकिन हम याचिकाकर्ताओं को उनके वकीलों द्वारा की गई गलतियों के लिए दंडित नहीं कर सकते।’’
पीठ ने कहा, ‘समय-पूर्व रिहाई के लिए रिट की मांग करने वाली याचिका में अपराध की प्रकृति बहुत महत्वपूर्ण विचारणीय बिंदु है।’
पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह छूट के लिए उनके मामलों पर गौर करे और तदनुसार आदेश पारित करे।
भाषा सुरेश संतोष
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