‘प्रोजेक्ट चीता’ के दो वर्ष: भारत को नए जत्थे के लिए केन्या की मंजूरी का इंतजार

‘प्रोजेक्ट चीता’ के दो वर्ष: भारत को नए जत्थे के लिए केन्या की मंजूरी का इंतजार

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  • Publish Date - September 14, 2024 / 03:45 PM IST,
    Updated On - September 14, 2024 / 03:45 PM IST

नयी दिल्ली, 14 सितंबर (भाषा) केन्या से चीतों के एक नए जत्थे लाने के लिए समझौता ज्ञापन प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे (समझौता ज्ञापन को) अंतिम रूप दे दिया है और अफ्रीकी देश से इस पर मंजूरी का इंतजार है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।

‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस’ के महानिदेशक एस पी यादव ने हाल में यहां पीटीआई संपादकों से बातचीत के दौरान बताया कि गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में बनाए जा रहे प्रजनन केंद्र के लिए भी चीते केन्या से लाए जाएंगे।

चीता को फिर से बसाने के प्रयास के तहत अब तक 20 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया गया है। सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए थे।

भारत आने के बाद से, आठ वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है। इनमें तीन मादा और पांच नर चीते थे। भारत में 17 शावकों का जन्म हुआ, जिनमें से 12 जीवित हैं, जिससे कूनो में शावकों सहित चीतों की कुल संख्या 24 हो गई है। वर्तमान में, सभी चीते बाड़ों में हैं। इस पहल को 17 सितंबर को दो साल पूरे हो रहे हैं।

भारत में चीता को बसाने के लिए कार्य योजना में दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से पांच वर्षों के लिए प्रति वर्ष लगभग 12-14 चीते लाने की बात कही गई है। केंद्र की चीता परियोजना संचालन समिति के सलाहकार यादव ने कहा, ‘‘समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे अंतिम रूप दे दिया है और केन्या सरकार को इसे मंजूरी देनी है। इसके बाद दोनों सरकारें एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगी।’’

यादव ने कहा, ‘‘दक्षिण अफ्रीका के साथ बातचीत जारी है। उसने पहले ही 12 से 16 अतिरिक्त चीतों को चिह्नित कर लिया है। उन्हें या तो इन चीतों को किसी दूसरे देश को देना होगा या उन्हें खत्म करना होगा। वर्तमान में यही स्थिति है।’’

दक्षिण अफ्रीका में चीतों को अभयारण्यों में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि अगर आबादी क्षमता से ज्यादा हो जाती है, तो वे या तो जानवरों का निर्यात कर देते हैं या उन्हें मार देते हैं, क्योंकि वे अधिक आबादी को संभाल नहीं सकते।

यादव ने कहा कि बन्नी में स्थापित किए जा रहे संरक्षण प्रजनन केंद्र के लिए चीते भी केन्या से लाए जाएंगे और ‘‘उन्हें लाने के लिए सर्दी का मौसम आदर्श समय है।’’ अधिकारियों ने बताया कि 500 ​​हेक्टेयर के बाड़े में विकसित किए जा रहे संरक्षण प्रजनन केंद्र में 16 चीते रखे जा सकते हैं।

यादव ने उन खबरों को भी खारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि पिछले महीने पवन नामक नामीबियाई चीता की जहर से मौत हो गई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुंह से लार निकलने या नाक से तरल पदार्थ निकलने जैसे जहर के कोई लक्षण नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं थी। यह पूरी तरह से अटकलें हैं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या चीते डूब सकते हैं, उन्होंने कहा कि उस रात भारी बारिश हुई थी और वहां पत्थर और चट्टानों से भरे नाले थे। यादव ने कहा, ‘‘हमें नहीं पता कि क्या हुआ, लेकिन लक्षण बताते हैं कि चीते की डूबने से मौत हुई। कोई और कारण नहीं था। शरीर पर कोई निशान नहीं था। दो डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम किया और डूबने की पुष्टि की। फेफड़ों में पानी था। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी।’’

कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में शिकार की कम संख्या के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘जंगल में चीतों की संख्या पूरी तरह से शिकार की आबादी पर निर्भर करती है। अगर शिकार की आबादी उन्हें सहारा नहीं दे सकती तो हम और चीते नहीं छोड़ेंगे। यह हमारे नियंत्रण में है।’’

यादव ने कहा कि कूनो के कर्मचारी जंगल में चीतों को ‘ट्रैंक्विलाइजर’ के जरिए रोगनिरोधी दवा देंगे। उन्होंने कहा कि अगर वे असफल होते हैं, तो ‘‘जानवरों को फिर से पकड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। संक्रमण को रोकने के लिए रोगनिरोधी दवाएं दी जाती हैं।

‘प्रोजेक्ट चीता’ से जुड़ी गोपनीयता के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा कि गोपनीयता की धारणा भ्रामक है। उन्होंने कहा ‘‘चीता को लाने पर मीडिया का अभूतपूर्व ध्यान गया। यह इससे पहले किसी भी अन्य पशु संरक्षण प्रयास की तुलना में कहीं अधिक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी देश ने, यहां तक ​​कि विकसित देशों ने भी, इस तरह का प्रयोग करने की हिम्मत नहीं की है। यदि आप पश्चिमी मीडिया को देखें, तो उनके लिए यह विश्वास करना कठिन है कि भारत ऐसा कर सकता है।’’

जुलाई में मध्यप्रदेश वन विभाग ने अफ्रीका से लाए गए चीतों और भारत में जन्मे उनके शावकों के प्रबंधन के संबंध में सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत जानकारी देने से इनकार कर दिया था।

‘प्रोजेक्ट चीता’ की प्रगति पर यादव ने कहा कि जब दक्षिण अफ्रीका ने चीता की पूरी आबादी खो दी थी, तो उन्होंने नामीबिया से जानवरों को आयात किया था, और उन्हें व्यवहार्य आबादी स्थापित करने में 20 साल लग गए। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में, हमने 2005 में राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में सभी बाघों को खो दिया था। वहां एक स्थिर आबादी को फिर से स्थापित करने में लगभग 15 साल लग गए।’’

भाषा आशीष पवनेश

पवनेश