‘प्रोजेक्ट चीता’ के दो साल : शानदार शुरुआत, परीक्षण और तीसरे साल में आगे की चुनौतियां

‘प्रोजेक्ट चीता’ के दो साल : शानदार शुरुआत, परीक्षण और तीसरे साल में आगे की चुनौतियां

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  • Publish Date - September 17, 2024 / 08:39 PM IST,
    Updated On - September 17, 2024 / 08:39 PM IST

(गौरव सैनी)

नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित ‘प्रोजेक्ट चीता’ की दूसरी वर्षगांठ इसके खट्टे-मीठे सफर से चिह्नित होती है, जहां एक तरफ चीता शावकों के जन्म ने आशा जगाई तो दूसरी तरफ कुछ शावकों की मृत्यु ने चिंता बढ़ा दी। साथ ही इस परियोजना को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।

कई चुनौतियों के बीच अब तीसरा साल भी नई आशा और महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ेगा।

मंगलवार को ‘प्रोजेक्ट चीता’ की शानदार पहल के दो वर्ष पूरे हुए हैं, इसलिए अधिकारी अफ्रीका से चीतों के एक नए समूह को गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में लाने के प्रयासों में तेजी ला रहे हैं, जो भारत में उनका दूसरा घर होगा। इसके अलावा, गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में एक प्रजनन केंद्र स्थापित किया जा रहा है।

सरकार का लक्ष्य मध्य प्रदेश के नीमच (लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर) और मंदसौर (500 वर्ग किमी) के प्रादेशिक प्रभागों के साथ-साथ राजस्थान के भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य (208 वर्ग किमी) और चित्तौड़गढ़ (लगभग 1,000 वर्ग किमी) में चीतों के लिए एक बड़ा रहवास स्थापित करना है।

परियोजना को गति तब मिली, जब दूसरे वर्ष भारतीय धरती पर 13 शावकों का जन्म हुआ, हालांकि उनमें से दो की मृत्यु हो गई।

इस साल दो वयस्क चीतों – नामीबियाई नर ‘शौर्य’ और ‘पवन’ की मौत हो गई। पवन कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्वतंत्र रूप से घूमने वाला एकमात्र चीता था। शौर्य की मौत जनवरी में सेप्टीसीमिया से हुई और पवन की मौत अगस्त में ‘‘डूबने’’ के कारण हुई। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि चीते आमतौर पर डूबते नहीं हैं।

अधिकारी 368 वर्ग किलोमीटर के गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य को चीतों के अगले बैच के लिए तैयार करने में व्यस्त हैं, जबकि कुनो में चीते केवल 0.5 से 1.5 वर्ग किलोमीटर के आकार के बाड़ों के अंदर हैं।

माना जाता है कि चीतों को जंगल में आमतौर पर शिकार की उपलब्धता के आधार पर 50 वर्ग किलोमीटर से अधिक बड़े क्षेत्रों की आवश्यकता होती है।

भारत में चीतों को पुन: बसाने में सहायता करने वाले एक अफ्रीकी विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘‘भारत की धरती पर दो साल बिताने के बावजूद चीते वास्तव में जंगल में नहीं रह रहे हैं। चीते लंबी यात्राएं पसंद करते हैं, और वे गंभीर तनाव में हो सकते हैं।’’

भाषा शफीक माधव

माधव