नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वसई-विरार महानगरपालिका में ठोस कूड़ा शोधन संयंत्रों के लिए निधि आवंटित करने में नाकाम रहने को लेकर शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई और कहा कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए राज्य कर्तव्यबद्ध है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयां की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के पूर्व के इस रुख पर नाराजगी जताई कि आवश्यक परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध नहीं है।
पीठ ने राज्य सरकार को एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह निर्दिष्ट किया जाए कि निधि कब जारी की जाएगी और महाराष्ट्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का अनुपालन करने वाले नगर निकायों की संख्या क्या है।
न्यायालय ने कहा कि हलफनामा 21 फरवरी तक दाखिल किया जाए।
पीठ ने 15 जनवरी को मुंबई के शहरी विकास विभाग के रुख पर असंतोष जताया था, जिसमें दावा किया गया था कि उसके पास संयंत्रों के लिए धन की कमी है और न्यायालय ने प्रधान सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए 24 जनवरी को पेश होकर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था।
पीठ ने कहा, ‘‘बहुत ही अजीब रुख अपनाया गया… जो यह है कि धन की अनुपलब्धता के कारण दो परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी जा सकती। हम ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कार्यान्वयन पर विचार कर रहे हैं। नियमों का कार्यान्वयन न होना वायु प्रदूषण से सीधा संबंध रखता है।’’
शुक्रवार को पीठ ने प्रधान सचिव एच. गोविंदराज से यह बताने को कहा कि राज्य सरकार ने वैधानिक नियमों को लागू करने के लिए नगर निकाय को धन मुहैया करने से इनकार क्यों किया। पीठ ने सवाल किया, ‘‘पैसा कहां जा रहा है? क्या राज्य सरकार का यह रुख है कि आप इन दो परियोजनाओं के लिए भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं, जो 2016 के नियमों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक हैं? हम इस पहलू पर विचार करेंगे कि पैसा कहां जा रहा है? हमें बताएं कि आप कब भुगतान करेंगे?’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह बहुत दुखद है कि हमें यह सब करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। राज्य सरकार पर्यावरण की रक्षा के लिए संवैधानिक योजना के तहत अपने दायित्वों को नहीं समझ रही।’’
शीर्ष अदालत पुणे स्थित राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के खिलाफ वसई विरार शहर महानगरपालिका की 2023 की अपील पर सुनवाई कर रही है।
नियमों के कार्यान्यवन को लेकर चरण रवींद्र भट्ट नामक व्यक्ति ने यह याचिका दायर की थी।
भाषा सुभाष पवनेश
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