स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना के तीन तरह के मरीजों के बारे में बताया.. दी है ये सलाह.. जानिए

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना के तीन तरह के मरीजों के बारे में बताया.. दी है ये सलाह.. जानिए

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  • Publish Date - January 18, 2022 / 03:39 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:52 PM IST

नई दिल्ली।  केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए क्लीनिकल गाइडलाइन में संशोधन किया है। इसमें बताए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, डॉक्टर्स को मरीजों को स्टेरॉयड देने से बचना चाहिए और लगातार खांसी होने पर उन्हें ट्यूबरक्लोसिस की जांच कराने की सलाह देनी चाहिए। यह गाइडलाइन टास्क फोर्स चीफ के दूसरी लहर के दौरान दवाओं के ओवर डोज़ पर खेद जताने के कुछ दिन बाद जारी की गई है।

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संशोधित गाइडलाइन के मुताबिक, स्टेरॉयड म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस जैसे खतरनाक सेकेंडरी इंफेक्शन को बढ़ावा दे सकते हैं। समय से पहले स्टेरॉयड का इस्तेमाल या लंबे समय तक स्टेरॉयड का हाई डोज देने की गलती इस जोखिम को बढ़ा सकती है। स्टेरॉयड केवल जरूरत पड़ने पर हल्के, मध्यम या गंभीर लक्षणों के आधार पर ही दिए जाने चाहिए।

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गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि यदि खांसी दो-तीन सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है तो मरीजों की ट्यूबरक्लोसिस या किसी दूसरी समस्या के लिए भी जांच होनी चाहिए। बता दें कि नीति आयोग के सदस्य और कोविड टास्क फोर्स के चीफ डॉ। वीके पॉल ने पिछले सप्ताह एक कॉन्फ्रेंस में स्टेरॉयड के मिसयूज़ और ओवरयूज़ को लेकर चिंता जाहिर की थी।

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डॉक्टर्स को मरीजों को स्टेरॉयड देने से बचना चाहिए और लगातार खांसी होने पर उन्हें ट्यूबरक्लोसिस की जांच कराने की सलाह देनी चाहिए। यह गाइडलाइन टास्क फोर्स चीफ के दूसरी लहर के दौरान दवाओं के ओवर डोज़ पर खेद जताने के अगले ही दिन जारी की गई है।

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कोविड-19 के संक्रमितों के इलाज के लिए केंद्र सरकार ने क्लीनिकल गाइडलाइन में संशोधन किया है। इसमें बताए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, डॉक्टर्स को मरीजों को स्टेरॉयड देने से बचना चाहिए और लगातार खांसी होने पर उन्हें ट्यूबरक्लोसिस की जांच कराने की सलाह देनी चाहिए। यह गाइडलाइन टास्क फोर्स चीफ के दूसरी लहर के दौरान दवाओं के ओवर डोज़ पर खेद जताने के कुछ दिन बाद जारी की गई है।

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संशोधित गाइडलाइन के मुताबिक, स्टेरॉयड म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस जैसे खतरनाक सेकेंडरी इंफेक्शन को बढ़ावा दे सकते हैं। समय से पहले स्टेरॉयड का इस्तेमाल या लंबे समय तक स्टेरॉयड का हाई डोज देने की गलती इस जोखिम को बढ़ा सकती है। स्टेरॉयड केवल जरूरत पड़ने पर हल्के, मध्यम या गंभीर लक्षणों के आधार पर ही दिए जाने चाहिए।

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गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि यदि खांसी दो-तीन सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है तो मरीजों की ट्यूबरक्लोसिस या किसी दूसरी समस्या के लिए भी जांच होनी चाहिए। बता दें कि नीति आयोग के सदस्य और कोविड टास्क फोर्स के चीफ डॉ। वीके पॉल ने पिछले सप्ताह एक कॉन्फ्रेंस में स्टेरॉयड के मिसयूज़ और ओवरयूज़ को लेकर चिंता जाहिर की थी।

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किन लोगों को है ज्यादा खतरा
इसमें बताया गया है कि 60 से ज्यादा आयु के लोगों या कार्डियोवस्कूयलर डिसीज, हाइपरटेंशन, कोरोनरी आर्टरी डिसीज, डायबिटिज या इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड स्टेट जैसे कि एचआईवी, ट्यूबरक्लोसिस, क्रॉनिक लंग, किडनी या लिवर डिसीज, केयरब्रोवस्कयूलर डिसीज और मोटापे से ग्रस्त लोगों में गंभीर रूप से बीमार पड़ने या मौत की आशंका ज्यादा रहती है।

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कब माइल्ड समझा जाएगा केस?
संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, सांस में तकलीफ या हाइपोक्सिया जैसी दिक्कतों के बिना अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (गले और नाक से जुड़े लक्षणों) के लक्षणों को माइल्ड डिसीज में काउंट किया जाता है। और ऐसी स्थिति में केवल होम आइसेलोशन या घरेलू देखभाल की सलाह दी जाती है। माइल्ड कोविड से संक्रमित केवल तभी मेडिकल सहायता ले सकते हैं जब उन्हें सांस में तकलीफ, तेज बुखार या 5 दिन से ज्यादा खांसी है।

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मॉडरेट कैटेगरी के लिए ये लक्षण होने जरूरी
इसके अलावा, सांस में तकलीफ के साथ यदि किसी मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन 90-93 प्रतिशत के बीच है तो उन्हें अस्पताल में दाखिल किया जा सकता है। और ऐसे मामलों को मॉडरेट केस के रूप में देखा जा सकता है। कुछ मरीजों को जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी रखा जा सकता है।

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गंभीर मामलों की ऐसे होगी पहचान
रेस्पिरेटरी रेट प्रति 30 मिनट से ज्यादा, सांस लेने में तकलीफ या रूम एयर में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 प्रतिशत से कम होने पर ही कोई मामला गंभीर समझा जाना चाहिए। ऐसी दिक्कत होने पर मरीज को आईसीयू में एडमिट करना होगा, क्योंकि उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होगी। नॉन इनवेसिव वेंटीलेशन (NIV), हेलमेट या फेस मास्क इंटरफेस की सुविधा उपलब्धता पर निर्भर होगी। सांस में तकलीफ वाले मरीजों को इसमें प्राथमिकता दी जा सकती है।

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मध्यम से गंभीर लक्षण वाले मरीज या फिर जिन्हें लक्षण दिखने के 10 दिन बाद से रेनल या हेपेटिक डिसफंक्शन (गुर्दे-जिगर से जुड़ी समस्या) नहीं हुआ है, उनके लिए रेमेडिसविर के आपातकालीन उपयोग की सिफारिश को जारी रखा गया है। ऑक्सीजन या होम सेटिंग्स में ना रहने वाले मरीजों के इलाज में ड्रग के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दी गई है। गाइडलाइन के मुताबिक, EUA या टोसिलिजुमैब ड्रग का ऑफ लेबल इस्तेमाल भी गंभीर मामलों में किया जा सकता है। 24 से 48 घंटे के बीच गंभीर लक्षण या आईसीयू में रहने वाले मरीजों के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है।