नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) लोकसभा में मंगलवार को देश में किसानों के सामने डीएपी खाद की किल्लत और तमिलनाडु में अत्यधिक बारिश से हुए नुकसान
समेत लोक महत्व के महत्वपूर्ण विषय उठाए गए और सरकार से उचित हस्तक्षेप की मांग की गई।
तृणमूल कांग्रेस के कीर्ति आजाद ने किसानों के सामने डीएपी खाद के संकट का मुद्दा लोकसभा में शून्यकाल में उठाया और सरकार से इस संबंध में बयान देने की मांग की।
उन्होंने कहा कि देश में डीएपी की किल्लत है जो रबी की फसल के इस सीजन में धान और आलू के लिए बहुत जरूरी है।
आजाद ने डीएपी की कालाबाजारी होने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘किसानों में हाहाकार मचा है। जगह जगह लाइन लगी है। देश के कोने-कोने से कालाबाजारी की खबरें आ रही हैं और परिस्थिति गंभीर होती जा रही है।’’
उन्होंने दावा किया कि पिछले साल देश में 34 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था, लेकिन इस साल केवल 30 लाख टन डीएपी के आयात का लक्ष्य रखा गया और उसमें भी केवल 19.7 लाख टन का आयात किया गया।
तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा कि क्या सरकार को डीएपी की कालाबाजारी की जानकारी है? उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री को संसद में बताना चाहिए कि देश में इस आवश्यक खाद की किल्लत क्यों है।
द्रमुक के टी आर बालू ने तमिलनाडु के कुछ जिलों में मूसलाधार बारिश से हुए नुकसान का जिक्र करते हुए सरकार से केंद्रीय दल राज्य में भेजने और क्षति का आकलन कर तत्काल राहत प्रदान करने का अनुरोध किया।
तमिलनाडु में मूसलाधार बारिश से प्रभावित कई जिले बाढ़ की समस्या, बुरी तरह क्षतिग्रस्त सड़कों और आवश्यक वस्तुओं की कमी से जूझ रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन से बात कर राज्य के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति की जानकारी ली और उन्हें केंद्र की ओर से हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया।
उत्तर पूर्व दिल्ली संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी ने शून्यकाल में अपने क्षेत्र में एम्स का एक स्क्रीनिंग सेंटर खोलने की मांग की।
उन्होंने दिल्ली सरकार पर राजधानी में आयुष्मान योजना लागू नहीं करके दिल्लीवासियों को केंद्र की इस योजना से वंचित रखने का आरोप लगाया।
भारत आदिवासी पार्टी के सदस्य राजकुमार रोत ने आरोप लगाया कि संविधान के तहत आदिवासियों को जो लाभ मिलने चाहिए, वह नहीं मिल रहे हैं और योजनाओं को लागू करने में ग्राम सभाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
उन्होंने सरकार से इस ओर ध्यान देने की मांग की।
भाषा वैभव मनीषा
मनीषा