चेन्नई, 19 अक्टूबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि चार साल की बच्ची से उसके यौन उत्पीड़न के संबंध में ठोस सबूत दिए जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। न्यायालय ने पुडुचेरी में बच्ची के साथ अपराध करने के आरोपी एक स्कूल शिक्षक को बरी करने का निचली अदालत का आदेश निरस्त कर दिया और उसे 10 साल की कठोर कैद तथा 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने हाल ही में अपने एक आदेश में निचली अदालत का वह फैसला निरस्त कर दिया जिसमें अर्लम पेरियारा को बरी कर दिया गया था।
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इससे पहले, पुडुचेरी के लोक अभियोजक डी भरत चक्रवर्ती ने दलील दी थी कि पीड़िता बच्ची है और मार्च 2018 में घटना के समय वह केवल चार वर्ष की थी। उन्होंने कहा कि बच्ची से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उसे सभी घटनाएं और आरोपी के कृत्य याद रहें। चक्रवर्ती को पदोन्नत करते हुए उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया है और उनके 20 अक्टूबर को कार्यभार ग्रहण करने की उम्मीद है।
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उन्होंने कहा कि बच्ची कुछ बात भूल भी सकती है और पीड़िता ने आरोपी द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न के बारे में अपनी मां को बताया था और वह उसे याद रख सकती हैं। निचली अदालत ने छह अक्टूबर, 2020 के अपने आदेश में आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि पीड़ित बच्ची के माता-पिता के बयान सुसंगत नहीं हैं। आरोपी के खिलाफ बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण (पोक्सो) कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का आदेश पलटते हुए कहा कि उसका निष्कर्ष पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण था।