पत्नी को संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है पति, क्या उसे अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए? सुनवाई पर विचार करेगी SC

petitions related to marital rape for hearing: न्यायालय वैवाहिक बलात्कार से जुड़ी याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा

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  • Publish Date - September 18, 2024 / 02:05 PM IST,
    Updated On - September 18, 2024 / 06:05 PM IST

नयी दिल्ली: petitions related to marital rape for hearing उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह इस जटिल प्रश्न से जुड़ी याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा कि अगर कोई पति अपनी पत्नी को जो नाबालिग नहीं है, यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो क्या उसे अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए?

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।

पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने उनको बताया कि मामलों में आंशिक रूप से सुनवाई हुई है और सुनवाई के बाद अगले दो दिनों में कार्यों का आकलन किया जाएगा।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘(इन मामलों पर) आज और कल होने वाली सुनवाई से हमें पता चल जाएगा, जिसके बाद हम निश्चित रूप से इसे (वैवाहिक बलात्कार के मामलों को) सूचीबद्ध करने पर विचार करेंगे।’’

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petitions related to marital rape for hearing

इससे पहले शीर्ष अदालत ने 16 जुलाई को कानूनी प्रश्न पर याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी।

प्रधान न्यायाधीश ने संकेत दिया था कि मामलों में 18 जुलाई को सुनवाई हो सकती है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ, अगर पत्नी नाबालिग नहीं हो, यौन संसर्ग या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।

भारतीय दंड संहिता को निरस्त कर दिया गया है और अब उसकी जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने ले ली है।

यहां तक कि नए कानून के तहत भी अपवाद दो से धारा 63 (बलात्कार) में कहा गया है कि ‘‘अपनी पत्नी जो 18 वर्ष से कम उम्र की नहीं हो, के साथ यौन संसर्ग या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने पत्नी के वयस्क होने पर पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करने से संबंधित आईपीसी के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 16 जनवरी, 2023 को केंद्र से जवाब मांगा था।

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बाद में 17 मई को उच्चतम न्यायालय ने इसी मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली ऐसी ही याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह हाल में अधिनियमित कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से प्रभाव में आ चुके हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें वैवाहिक बलात्कार से संबंधित मामलों को सुलझाना होगा।’’

इससे पहले केंद्र ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार को इन याचिकाओं पर अपना जवाब दायर करना होगा।

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