नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 2016 में चार वर्षीय बच्चे के यौन उत्पीड़न और हत्या के मामले में एक दोषी को दी गई मौत की सजा को मंगलवार को रद्द कर दिया और इसे बिना किसी छूट के 25 साल की जेल की सजा में तब्दील कर दिया।
अपराध को खौफनाक बताते हुए, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने मामले के परिस्थितियों पर गौर करते हुए कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जहां सुधार की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो गई हो।
पीठ ने कहा कि यह मामला दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, बिना किसी छूट के निर्धारित अवधि के लिए कारावास की सजा ही अपराध के अनुपात में होगी और कानूनी प्रणाली की प्रभावकारिता में जनता के विश्वास को भी खतरे में नहीं डालेगी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘बिना किसी छूट के 25 साल की अवधि के लिए कारावास की सजा उचित होगी।’’
शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के अप्रैल 2019 के फैसले को चुनौती देने वाले दोषी शंभूभाई रायसंगभाई पढियार की अपील पर अपना फैसला सुनाया।
उच्च न्यायालय ने हत्या सहित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के अलावा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए निचली अदालत द्वारा उसे दी गई सजा और मृत्युदंड की पुष्टि की थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पढियार ने अप्रैल 2016 में गुजरात के भरूच जिले में चार वर्षीय बच्चे का अपहरण कर उसका यौन उत्पीड़न किया और उसकी हत्या कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध खौफनाक कृत्य था। उसने मासूम बच्चे को आइसक्रीम का लालच देकर फुसलाया और अप्राकृतिक यौनाचार कर उसकी हत्या कर दी। अपीलकर्ता ने बच्चे की बेरहमी से गला घोंटकर हत्या की।’’
उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई जांच रिपोर्ट से पता चला कि घटना के समय अपीलकर्ता की आयु 24 वर्ष थी, उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और वह निम्न सामाजिक-आर्थिक परिवार से था। पीठ ने कहा कि वडोदरा जेल के अधीक्षक की रिपोर्ट से पता चलता है कि जेल में अपीलकर्ता का व्यवहार पूरी तरह सामान्य था और उसका आचरण अच्छा था।
पीठ ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल की रिपोर्ट से पता चलता है कि अपीलकर्ता को फिलहाल कोई मानसिक समस्या नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, हम मानते हैं कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है जहां यह कहा जा सके कि सुधार की संभावना पूरी तरह से खारिज हो गई है।’’
पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का मामला दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता, लेकिन अपराध की प्रकृति को देखते हुए अदालत का ‘‘दृढ़तापूर्वक’’ मानना है कि आजीवन कारावास की सजा-जो सामान्यतः 14 वर्ष होती है-अत्यधिक असंगत और अपर्याप्त होगी।
भाषा आशीष दिलीप
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