न्यायालय ने एससी-एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामला रद्द करते हुए कहा: घटना लोगों के बीच नहीं हुई |

न्यायालय ने एससी-एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामला रद्द करते हुए कहा: घटना लोगों के बीच नहीं हुई

न्यायालय ने एससी-एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामला रद्द करते हुए कहा: घटना लोगों के बीच नहीं हुई

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Modified Date: January 31, 2025 / 07:08 PM IST
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Published Date: January 31, 2025 7:08 pm IST

नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह कथित घटना लोगों के बीच नहीं हुई थी।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) के अनुसार, किसी अपराध के घटित होने के लिए यह स्थापित होना आवश्यक है कि आरोपी ने अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को किसी स्थान पर लोगों के बीच बेइज्जत करने के इरादे से जानबूझकर अपमानित किया या धमकाया हो।

पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध स्थापित करने के लिए, यह आवश्यक होगा कि आरोपी ने किसी स्थान पर लोगों के बीच अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसी भी सदस्य को जाति सूचक गाली दी हो।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इसलिए, हमारा विचार है कि चूंकि घटना ऐसी जगह पर नहीं हुई है जिसे लोगों की मौजूदगी वाला स्थान कहा जा सकता हो, इसलिए अपराध एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) या धारा 3(1)(एस) के प्रावधानों के तहत नहीं आएगा।’’

अधिनियम की धारा 3 अत्याचार के अपराधों के लिए दंड से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने प्राथमिकी का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि कथित घटना शिकायतकर्ता के चैंबर में हुई थी और घटना के बाद उसके अन्य सहयोगी वहां पहुंचे।

शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के फरवरी 2024 के आदेश को चुनौती देने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया।

उच्च न्यायालय ने तिरुचिरापल्ली की एक निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही को रद्द करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि सितंबर 2021 में व्यक्ति ने शिकायतकर्ता, जो एक राजस्व निरीक्षक है, से संपर्क किया था ताकि भूमि के ‘‘पट्टे’’ में नाम शामिल करने के संबंध में अपने पिता के नाम पर दायर याचिका की स्थिति के बारे में जानकारी मिल सके।

कथित झगड़े के बाद, अपीलकर्ता ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता के कार्यालय में उसे जातिगत गालियां दीं।

शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज कराई और एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) सहित कथित अपराधों के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

जांच के बाद, तिरुचिरापल्ली की एक निचली अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया।

आपराधिक कार्यवाही शुरू होने से व्यथित होकर, व्यक्ति ने इसे रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया।

उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि यदि उस पर मुकदमा चलाया जाता है तो इसमें कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि ‘लोगों के बीच’ का मतलब एक खुले स्थान से है, जहां आम लोग, आरोपी द्वारा पीड़ित से की गई बातचीत को देख या सुन सकें।’’

न्यायालय ने कहा कि यदि कथित अपराध बंद कमरे में हुआ, जहां आम लोग मौजूद नहीं थे, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह लोगों के बीच हुआ।

अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और संबंधित कार्यवाही के अलावा आरोपपत्र को भी रद्द कर दिया।

भाषा सुभाष पवनेश

सुभाष

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)