नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आपराधिक अपीलों की बड़ी संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति का सुझाव दिया।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कई उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 63,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय में यह आंकड़ा 13,000 है, और इसी प्रकार कर्नाटक, पटना, राजस्थान और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों में क्रमशः 20,000, 21,000, 8,000 और 21,000 आपराधिक मामले लंबित हैं।
पीठ ने कहा कि वह 2021 के फैसले को आंशिक रूप से संशोधित कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली खंडपीठों द्वारा आपराधिक अपीलों पर फैसला करने के लिए अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि कोई उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है तो वहां किसी भी अस्थायी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा, “हमें केवल इस शर्त पर विचार करना होगा कि अस्थायी न्यायाधीश उन पीठों में बैठेंगे जो आपराधिक मामलों की सुनवाई कर रही हैं तथा एक वर्तमान न्यायाधीश पीठासीन न्यायाधीश के रूप में होगा… इस सीमा तक हमें संशोधन की आवश्यकता है।” पीठ ने अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को 28 जनवरी को इसमें सहायता करने को कहा।
सर्वोच्च न्यायालय ने 20 अप्रैल, 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसले में लंबित मामलों के निपटारे के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दो से तीन साल की अवधि के लिए अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने कुछ उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में आपराधिक अपीलों के लंबित होने को ध्यान में रखते हुए मामले को सूचीबद्ध किया है।
पीठ द्वारा लोक प्रहरी बनाम भारत संघ नामक 2019 के मामले की सुनवाई की जा रही है, जिस पर 2021 में निर्णय सुनाया गया था। पीठ 2021 के फैसले के सुचारू कार्यान्वयन से संबंधित मामले पर विचार कर रही है।
भाषा प्रशांत माधव
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