चेन्नई, 21 जनवरी (भाषा) तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष एम. अप्पावु ने सोमवार को पटना में अपने समकक्षों के साथ एक बैठक के दौरान अपने राज्य के राज्यपाल आर. एन. रवि पर लोगों, निर्वाचित सरकार और सौ साल पुरानी तमिलनाडु विधानसभा का लगातार ‘अनादर’ करने का आरोप लगाते हुए बैठक से बहिर्गमन कर दिया।
अप्पावु ने कहा कि राज्यपाल रवि की गतिविधियां ‘बेहद चिंताजनक’ हैं। राज्यपालों की नियुक्ति पर पुंछी, सरकारिया, राजमन्नार और वेंकटचलैया आयोगों की सिफारिशों का हवाला देते हुए अप्पावु ने तर्क दिया कि राज्य विधानमंडल को एक प्रस्ताव के माध्यम से राज्यपाल को ‘हटाने’ का अधिकार दिया जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 156 से यह शब्द हटा दिया जाना चाहिए कि ‘राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा पर्यन्त पद धारण करेंगे’।
हालांकि, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण ने उनकी टिप्पणियों पर आपत्ति जताई और कहा कि उनकी टिप्पणियों को पटना में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 85वें सम्मेलन की बैठक के विवरण में दर्ज नहीं किया जाएगा। उन्होंने अप्पावु को राज्यपाल पर टिप्पणी करने से बचने की चेतावनी दी।
विरोध करते हुए अप्पावु ने कहा, ‘‘अगर मैं इस सम्मेलन में इस बारे में नहीं बोल सकता, तो मैं और कहां बोल सकता हूं।’’ इसके बाद उन्होंने बैठक से बहिर्गमन कर दिया।
राज्य सरकार की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि अध्यक्ष ‘संविधान की 75वीं वर्षगांठ: संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में संसद और राज्य विधान निकायों का योगदान’ विषय पर आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे।
अप्पावु ने राज्यपाल द्वारा राज्य शासन के मामलों में उनकी परिभाषित भूमिकाओं से परे हस्तक्षेप करने और इस तरह संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने का दावा करते हुए इस पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने विधानसभा में पारंपरिक वार्षिक अभिभाषण को टालने के लिए रवि की आलोचना की। ये अभिभाषण राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया था।
अप्पावु ने कहा कि राज्य की स्वायत्तता संदिग्ध हो गई है और संघवाद का दर्शन भी कमजोर हो गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के प्रति सौतेले व्यवहार की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
भाषा यासिर वैभव
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