कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में निगरानी तकनीक का दुरुपयोग महिलाओं को डराने के लिए किया जा रहा: अध्ययन |

कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में निगरानी तकनीक का दुरुपयोग महिलाओं को डराने के लिए किया जा रहा: अध्ययन

कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में निगरानी तकनीक का दुरुपयोग महिलाओं को डराने के लिए किया जा रहा: अध्ययन

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Modified Date: November 29, 2024 / 02:17 PM IST
Published Date: November 29, 2024 2:17 pm IST

नयी दिल्ली, 29 नवंबर (भाषा) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में मूल रूप से जानवरों की निगरानी जैसे संरक्षण कार्यों के उद्देश्य से लगाए गए कैमरों और ड्रोन का दुरूपयोग स्थानीय सरकारी अधिकारियों और पुरुषों द्वारा महिलाओं की निगरानी के लिए किया जा रहा है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।

अध्ययन में कहा गया है कि स्थानीय सरकारी अधिकारी और पुरुष इन उपकरणों का इस्तेमाल कर जानबूझकर महिलाओं की सहमति के बिना उनकी निगरानी करते हैं।

‘एनवायरनमेंट एंड प्लानिंग एफ’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि वन रेंजरों ने स्थानीय महिलाओं को डराने और प्राकृतिक संसाधनों को इकट्ठा करने से रोकने के लिए जानबूझकर उनके ऊपर ड्रोन उड़ाए, जबकि ऐसा करने का उन्हें कानूनी अधिकार नहीं है।

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उत्तराखंड के कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के आसपास के कुल 270 निवासियों, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं, का 14 महीनों तक साक्षात्कार लिया।

अध्ययन में लेखकों ने लिखा है, ‘‘हमारा तर्क है कि वन प्रशासन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों, जैसे कैमरा ट्रैप और ड्रोन का उपयोग इन जंगलों को पुरुषों के वर्चस्व वाले स्थानों में बदल देता है, जिससे समाज का पितृसत्तात्मक नजरिया जंगल तक भी पांव पसार जाता है।’’

शोधकर्ता और प्रमुख लेखक त्रिशांत सिमलाई ने बताया कि अपने पुरुष-प्रधान गांवों से दूर जंगल में कुछ समय शांति से बिताने के लिए आने वाली महिलाओं ने उन्हें बताया कि ‘कैमरा ट्रैप’ के कारण अब उन्हें हर वक्त महसूस होता है कि वे निगरानी में हैं और बाधित महसूस करती हैं, जिसके कारण वे फुसफुसा कर बात करती हैं और धीमी आवाज में गाती हैं।

उन्होंने कहा कि इससे हाथियों और बाघों जैसे संभावित खतरनाक जानवरों से अचानक मुठभेड़ की आशंका बढ़ जाती है।

यह राष्ट्रीय उद्यान महिलाओं को राहत प्रदान करने के लिए जाना जाता है, जो घर में हिंसा और शराबखोरी जैसी कठिन परिस्थितियों से बचने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने के अलावा, वहां अपना लंबा समय बिताती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि वे अक्सर अपनी कहानियां साझा करती हैं और पारंपरिक गीतों के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करती हैं।

महिलाओं ने सिमलाई को बताया कि वन्यजीव निगरानी परियोजनाओं की आड़ में तैनात की गई नयी निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल उन्हें डराने और उन पर अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए किया जा रहा है, साथ ही उन पर निगरानी भी की जा रही है।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के शोधकर्ता त्रिशांत सिमलाई ने कहा, ‘‘वन्यजीवों की निगरानी के लिए लगाए गए कैमरे से ली गई जंगल में शौचालय जाती एक महिला की तस्वीर को जानबूझकर परेशान करने के लिए स्थानीय फेसबुक और व्हाट्सऐप ग्रुप पर प्रसारित किया गया।’’

उन्होंने कहा कि जब महिलाएं ‘कैमरा ट्रैप’ देखती हैं, तो वे संकोच महसूस करती हैं क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि कौन उन्हें देख रहा है या सुन रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वे अलग तरह से व्यवहार करने लगती हैं, अक्सर बहुत शांत हो जाती हैं, जो उन्हें खतरे में डाल देता है।

सिमलाई ने बताया कि जिस महिला का उन्होंने साक्षात्कार लिया था, उसकी बाघ के हमले में मौत हो गई है।

सिमलाई ने कहा, ‘‘किसी को भी यह एहसास नहीं था कि जानवरों पर नजर रखने के लिए भारतीय जंगलों में लगाए गए ‘कैमरा ट्रैप’ वास्तव में इन स्थानों का उपयोग करने वाली स्थानीय महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।’’

संरक्षण सामाजिक वैज्ञानिक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में संरक्षण और समाज के प्रोफेसर एवं सह-लेखक क्रिस सैंडब्रुक ने कहा, ‘‘इन निष्कर्षों ने संरक्षण समुदाय में काफी हलचल पैदा कर दी है। वन्यजीवों की निगरानी के लिए इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना परियोजनाओं के लिए बहुत आम बात है, लेकिन यह इस बात की जरूरत पर प्रकाश डालता है कि वे अनजाने में नुकसान ना पहुंचाएं।’’

भाषा सुरभि नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)