नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपीलीय अदालतों द्वारा दिये गये स्थगन आदेशों के कारण आपराधिक मुकदमों की सुनवाई पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले पर आठ राज्यों और उच्च न्यायालयों से सोमवार को जवाब मांगा।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने हाल में आपराधिक मुकदमों पर स्थगन आदेशों के प्रतिकूल प्रभाव के संबंध में आठ नवंबर, 2021 को उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पारित आदेश का स्वत: संज्ञान लिया।
इस न्यायालय द्वारा ऐसे स्थगन आदेश दिए जाने के मानदंड निर्धारित किए जाने के बावजूद अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन आदेशों का मुकदमों की सुनवाई पर प्रतिकूल प्रभाव संबंधी मामला सोमवार को पहली बार विचार के लिए आया।
न्यायाधीश ने कहा कि स्थगन के सवाल पर संबंधित उच्च न्यायालय छह सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं और उन्होंने 17 मार्च, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह के दौरान सुनवाई करने का आदेश दिया।
पीठ ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दाखिल हलफनामे की एक प्रति संबंधित राज्य सरकारों के स्थायी अधिवक्ताओं को सौंपने का आदेश दिया। महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल और मिजोरम को अपने जवाब दाखिल करने होंगे, क्योंकि उन्होंने अपने क्षेत्र में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सहमति वापस ले ली है।
नवंबर 2021 में सीबीआई द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन आदेशों और इसके प्रतिकूल प्रभाव के मुद्दे को उठाया।
शीर्ष अदालत ने आठ नवंबर, 2021 के अपने आदेश में कहा, ‘‘दूसरा पहलू जिससे हम चिंतित हैं, वह है अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन आदेश और इस प्रकार मुकदमे की सुनवाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना, बावजूद इसके कि इस अदालत ने इस तरह के स्थगन देने के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं।’’
इसके बाद पीठ ने रेखांकित किया कि इस पहलू को न्यायिक रूप से देखे जाने की आवश्यकता है, इसके लिए एक उचित याचिका को जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत किया जाना चाहिए तथा संबंधित राज्यों और उच्च न्यायालयों को नोटिस दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था, इसलिए हम यह उचित समझते हैं कि इस पहलू को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उनके विचार और उचित आदेश के लिए रखा जाना चाहिए, क्योंकि इसका वर्तमान मामले से कोई सीधा संबंध नहीं हो सकता है।’’
इससे पहले सीबीआई से कहा गया था कि वह अपनी अभियोजन इकाई को मजबूत करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों, बाधाओं और एजेंसी द्वारा जांच किए गए मामलों में दोषसिद्धि दर के बारे में शीर्ष अदालत को अवगत कराए।
ये मुद्दे तब उठे जब शीर्ष अदालत ने पाया कि उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील 542 दिनों की देरी के बाद दायर की गई थी। 2019 में, सीबीआई ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि जांच एजेंसी से संबंधित अपील के निपटारे में ‘‘लंबा समय लगता है’’ और इससे संबंधित 13,200 से अधिक मामले देश भर की अदालतों में लंबित हैं, जिनमें शीर्ष अदालत में 706 मामले शामिल हैं।
भाषा आशीष पवनेश
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