न्यायालय का संसद-विधानसभा में एक तिहाई महिला आरक्षण के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार

न्यायालय का संसद-विधानसभा में एक तिहाई महिला आरक्षण के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार

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  • Publish Date - January 10, 2025 / 03:16 PM IST,
    Updated On - January 10, 2025 / 03:16 PM IST

नयी दिल्ली, 10 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को वर्ष 2023 के नारी शक्ति वंदन अधिनियम के उस परिसीमन खंड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने का प्रावधान है।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जया ठाकुर और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी।

पीठ ने बताया कि जया ठाकुर की याचिका ने उस विधेयक को चुनौती दी जो अधिनियम बन गया था, जबकि एनएफआईडब्ल्यू ने कानून के परिसीमन खंड को चुनौती दी थी।

ठाकुर की याचिका को निरर्थक बताकर खारिज कर दिया गया। अदालत अनुच्छेद 32 के तहत एनएफआईडब्ल्यू की याचिका पर भी विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी।

एनएफआईडब्ल्यू ने वर्ष 2023 के अधिनियम के अनुच्छेद 334ए (1) या खंड पांच की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, जिसमें अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को एक पूर्व शर्त बना दिया गया है।

तीन नवंबर, 2023 को शीर्ष अदालत ने ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत के लिए महिला आरक्षण कानून के एक हिस्से को रद्द करना ‘बहुत मुश्किल’ होगा जो जनगणना के बाद लागू होगा।

इसने ठाकुर की याचिका पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता के वकील से केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को प्रति देने को कहा।

21 सितंबर, 2023 को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने वाले विधेयक को संसद की मंजूरी मिली थी।

संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा ने लगभग आम सहमति से और राज्यसभा ने आम सहमति से पारित कर दिया। इस कानून को लागू करने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि जनगणना कराने समेत परिसीमन (लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण) की कवायद को पूरा किया जाना अभी बाकी है।

कानून के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण 15 साल तक जारी रहेगा और संसद बाद में लाभ की अवधि बढ़ा सकती है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए कोटा के भीतर कोटा का प्रावधान है, जबकि विपक्ष ने इसका लाभ अन्य पिछड़े वर्ग तक विस्तारित करने की मांग की है।

वर्ष 1996 से ही इस विधेयक को संसद में पास कराने की कोशिशें हो रही थीं और ऐसी आखिरी कोशिश वर्ष 2010 में हुई थी, जब राज्यसभा ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी थी, लेकिन लोकसभा में यह पारित नहीं हो सका था।

उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या करीब 15 फीसदी है, जबकि कई विधानसभाओं में इनका प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से कम है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 29 सितंबर, 2023 को इस विधेयक को मंजूरी दी थी।

भाषा

संतोष नरेश

नरेश