नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ‘वीआईपी दर्शन’ के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलने और मंदिरों में एक खास वर्ग से विशेष व्यवहार किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर विचार करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करना समाज और मंदिर प्रबंधन का काम है, लिहाजा अदालत कोई निर्देश नहीं दे सकती।
पीठ ने कहा, ‘हालांकि हमारी राय हो सकती है कि कोई विशेष व्यवहार नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन यह अदालत निर्देश जारी नहीं कर सकती। हमें नहीं लगता कि यह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकारों का उपयोग प्रयोग करने के लिए उपयुक्त मामला है। हालांकि, हम स्पष्ट करते हैं कि याचिका खारिज होने के बाद अधिकारी आवश्यकतानुसार उचित कार्रवाई करने से इनकार नहीं करेंगे।”
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कहा था कि “वीआईपी दर्शन” की यह परंपरा पूरी तरह से मनमानी है और 12 ज्योतिर्लिंग होने के कारण कुछ मानक संचालन प्रक्रियाओं की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत वृंदावन में श्री राधा मदन मोहन मंदिर के ‘सेवायत’ विजय किशोर गोस्वामी द्वारा इस मुद्दे पर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका में कहा गया है कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, क्योंकि इससे शुल्क वहन करने में असमर्थ श्रद्धालुओं के साथ भेदभाव होता है। याचिका में मंदिर में देवताओं के शीघ्र दर्शन के लिए लगाए जाने वाले अतिरिक्त शुल्क के बारे में भी कई चिंताएं जताई गईं।
याचिका में कहा गया कि विशेष दर्शन सुविधाओं के लिए 400 से 500 रुपये तक शुल्क वसूलने से साधन संपन्न श्रद्धालुओं और उन लोगों के बीच विभाजन पैदा हो गया है जो इस शुल्क को वहन करने में असमर्थ हैं, विशेषकर वंचित महिलाएं, दिव्यांग व्यक्ति और वरिष्ठ नागरिक।
याचिका में कहा गया है कि इस बारे में गृह मंत्रालय को अवगत कराने के बावजूद केवल आंध्र प्रदेश को निर्देश जारी किया गया, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कोई निर्देश नहीं दिया गया।
भाषा
जोहेब नरेश
नरेश
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)