उप्र: जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के खिलाफ याचिका शीर्ष अदालत में खारिज |

उप्र: जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के खिलाफ याचिका शीर्ष अदालत में खारिज

उप्र: जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के खिलाफ याचिका शीर्ष अदालत में खारिज

:   Modified Date:  October 14, 2024 / 02:55 PM IST, Published Date : October 14, 2024/2:55 pm IST

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आजम खान की अध्यक्षता वाले न्यास द्वारा संचालित मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा।

उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूमि लीज रद्द किये जाने के खिलाफ मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की कार्यकारी समिति की याचिका खारिज कर दी थी।

राज्य सरकार ने लीज शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए न्यास को आवंटित 3.24 एकड़ भूखंड का पट्टा रद्द कर दिया था। सरकार का कहना है कि यह भूमि मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित की गयी थी, लेकिन वहां एक स्कूल चलाया जा रहा था।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने न्यास का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों का संज्ञान लिया और उत्तर प्रदेश सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी बच्चे को उपयुक्त शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित न किया जाए।

सिब्बल ने तर्क दिया कि 2023 में पट्टे को रद्द करने का निर्णय बिना कोई कारण बताए लिया गया था।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्होंने मुझे नोटिस जारी किया होता और कारण बताए होते, तो मैं इसका जवाब दे सकता था। क्योंकि, आखिरकार, मामला कैबिनेट के पास गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने (भूमि आवंटन पर) निर्णय लिया था। ऐसा नहीं है कि मैंने कोई निर्णय लिया।’’

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा भूमि पट्टे को रद्द करने के 18 मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली न्यास की याचिका खारिज कर दी थी।

न्यास की कार्यकारी समिति ने तब दलील दी थी कि सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना ही पट्टा विलेख रद्द कर दिया गया।

उच्च न्यायालय में राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता ने बिना ‘कारण बताओ नोटिस’ के पट्टा रद्द करने का बचाव इस आधार पर किया था कि जनहित सर्वोपरि है।

यह दलील दी गयी थी कि उच्च शिक्षा (शोध) संस्थान के उद्देश्य से अधिगृहीत भूमि का उपयोग एक स्कूल चलाने के लिए किया जा रहा था।

महाधिवक्ता ने विशेष जांच दल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि पट्टा रद्द करने से पहले याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए पर्याप्त अवसर दिया गया था।

भाषा सुरेश नरेश

नरेश

 

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