अहमदाबाद, 23 जनवरी (भाषा) गुजरात उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा दायर उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें 2021 में गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अधिनियम में किए गए एक संशोधन को चुनौती दी गई थी।
इस संशोधन से राज्य सरकार को निजी स्कूलों में शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए नियम बनाने का अधिकार मिला है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह संशोधन धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अपने शैक्षणिक संस्थानों का प्रबंधन करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल की अगुवाई वाली एक खंडपीठ ने कहा, ‘इस संबंध में सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं।’
हालांकि, अदालत का विस्तृत निर्णय अभी उपलब्ध नहीं है।
संशोधित अधिनियम ने राज्य शिक्षा बोर्ड को निजी माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती के लिए योग्यताएं और चयन प्रक्रिया तय करने का अधिकार दिया है।
अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संचालित स्कूलों ने याचिकाओं में दावा किया था कि यह संशोधन ‘अनुचित और गैरकानूनी’ है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि विनियमन के नाम पर राज्य ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों का अतिक्रमण किया और संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 का उल्लंघन किया।
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकारों की रक्षा करता है, जबकि अनुच्छेद 30 उन्हें ‘शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन’ का अधिकार देता है।
राज्य सरकार ने इस संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य निष्पक्ष और पारदर्शी मेरिट आधारित चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
संशोधित अधिनियम शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति और सेवा समाप्ति की शर्तों को निर्धारित करता है। इसके साथ ही यह गुजरात राज्य विद्यालय सेवा आयोग को सरकार द्वारा सहायता प्राप्त निजी माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों और प्रधानाचार्यों का चयन करने की अनुमति देता है।
भाषा राखी वैभव
वैभव