फौजी कभी नहीं मरते, वे हिन्दुस्तान के दिलों में जीते हैं : वीरता पुरस्कार विजेता अधिकारी की मां

फौजी कभी नहीं मरते, वे हिन्दुस्तान के दिलों में जीते हैं : वीरता पुरस्कार विजेता अधिकारी की मां

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  • Publish Date - July 8, 2024 / 01:02 PM IST,
    Updated On - July 8, 2024 / 01:02 PM IST

नयी दिल्ली, आठ जुलाई (भाषा) देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले मेजर मुस्तफा बोहरा की मां फातिमा बोहरा का कहना है कि फौजी कभी मरते नहीं, बल्कि वे पूरे हिन्दुस्तान के दिलों में जीते हैं।

मुस्तफा के बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। अशोक चक्र, कीर्ति चक्र के बाद शौर्य चक्र देश का तीसरा सर्वोच्च वीरता पदक है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित रक्षा अलंकरण समारोह में सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को 10 कीर्ति चक्र प्रदान किए जिनमें से सात पदक मरणोपरांत दिए गए।

मुस्तफा का वीरता पदक उनके अभिभावकों को प्रदान किया गया।

राष्ट्रपति भवन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘‘राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 252 आर्मी एविएशन कोर के मेजर मुस्तफा बोहरा को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया। अक्टूबर 2022 में उन्होंने राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया और आग लगने के बाद हेलीकॉप्टर को आबादी वाले क्षेत्र से दूर ले जाकर असाधारण साहस और उड़ान कौशल का प्रदर्शन किया।’’

रविवार को रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता द्वारा ‘एक्स’ पर साझा किए गए एक वीडियो में, बोहरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाली फातिमा बोहरा ने अपने बेटे और उनके राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के दिनों की यादें साझा कीं।

उन्होंने कहा, ‘‘जब उसने एनडीए में पहला कदम रखा तो पहला निर्णय यही था कि देश की सेवा करनी है। जिंदगी में पैसा और अन्य चीजें इतना महत्व नहीं रखतीं, सम्मान बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सेना में उसने जो सम्मान महसूस किया उसका परिपूर्ण आप आज देख रहे हैं कि उसे शौर्य चक्र से नवाजा गया है।’’

फातिमा ने कहा, ‘‘ट्रेनिंग के दौरान उसका जो सफर था वह काफी प्रेरणादायक रहा। वह अपने दोस्तों की हमेशा तारीफ करता था। वहां पर वरिष्ठ ही आपके भविष्य के निर्माता हैं और वरिष्ठों के सहयोग के बारे में वह मुझे हमेशा बताता था।’’

भावुक होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कहते हैं कि मां को पहले से ही चीजों का पता चल जाता है, शायद इसीलिए मुझे भी उसके शहीद होने का पहले से ही आभास हो गया था और घटना के दो दिन पहले से ही मैं रोने लगी थी, खाना तक छोड़ दिया था। फिर उसके मारे जाने की खबर आई।’’

उन्होंने कहा, ‘‘फौजी कभी मरते नहीं हैं, वह अमर होते हैं, बल्कि मैं कहती हूं वह अमर नहीं होते हैं वह एक नयी जिंदगी की तरफ कदम बढ़ाते हैं… आपके दिलों में, मेरे दिलों में, पूरे हिन्दुस्तान के दिलों में वह जीते हैं।’’

भाषा खारी मनीषा

मनीषा