रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष, नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने २६ दिसंबर को लगने वाले सूर्यग्रहण के संबंध में कहा है कि सूर्यग्रहण को एक खगोलीय प्राकृतिक घटना के रूप में ही लिया जाना चाहिए। सूर्यग्रहण से किसी भी राशि के व्यक्ति/गर्भवती महिला/जल एवं खाद्यान्न पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए इससे जुड़े विभिन्न अंधविश्वासों व भ्रमों के फेर में न पड़े।
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उन्होने कहा है कि सूर्य तथा पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाने के कारण सूर्यग्रहण होता है। सरल शब्दों में इस खगोलीय घटना को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य प्रकाशवान पिण्ड है तथा पृथ्वी एवं चंद्रमा प्रकाशहीन। अपनी-अपनी कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए चंद्रमा या पृथ्वी में से कोई एक जब सूर्य के सामने आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश अंशत: या पूर्णत: दूसरे तक नहीं पहुँच पाता तो ग्रहण लगता है। सूर्यग्रहण अमावश्या के दिन ही होता है।
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26 दिसंबर 2019 को साल का तीसरा सूर्यग्रहण पड़ेगा। यह वलयाकार सूर्यग्रहण है। जब चंद्रमा पृथ्वी से काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात् चन्द्रमा सूर्य को इस प्रकार से ढँकता है कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्यग्रहण कहते हैं।
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सूर्यग्रहण को देखने के तरीकों के संबंध में भी काफी भ्रम है। वास्तव में सूर्य को सामान्य दिनों में नंगी आँखों से देखना भी आँखों के लिए हानिकारक है लेकिन सामान्य दिनों में सूर्य की प्रखरता के कारण उसे लोग एकटक देखने का प्रयास नहीं करते। जबकि सूर्यग्रहण के अवसर पर उत्सुकता व जिज्ञासा के कारण लोग ग्रहण की अवस्थाओं को लगातार देखते हैं। सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों के साथ ही अल्ट्रावायलेट व इन्फ्रारेड किरणें भी होती हैं जो आँख के परदे (रेटिना) की कोशिकाओं पर पड़ती हैं तथा लगातार देखे जाने पर प्रकाश ऊर्जा, ऊष्मा ऊर्जा के रूप में अवशोषित हो जाती है तथा आँख के परदे के उस विशिष्ट हिस्से को जलाती है, जिससे रेटिना में स्थायी क्षति हो सकती है।
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इससे प्रभावित भाग की कार्यक्षमता कम हो जाती है तथा व्यक्ति को धुंधला दिखाई देता है। सामान्य दिनों की भाँति आंशिक ग्रहण में भी सूर्य की किरणें उतना ही नुकसान पहुँचाती है जबकि पूर्ण सूर्यग्रहण में सूर्य पूरी तरह ठंडा होने के कारण ग्रहण देखना अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित है। आंशिक सूर्यग्रहण में सूर्य पूरी तरह ढँका नहीं होता। सूर्यग्रहण को रंगीन फिल्म, पानी में, दूरबीन से, धूप के चश्मे से न देखें। ग्रहण को पिन होल कैमरा बनाकर, सोलर फिल्टर युक्त चश्में से देखा जा सकता है।
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सूर्यग्रहण के संबंध में सदियों से कई प्रकार के अंधविश्वास व मान्यताएँ चली आ रही है जैसे सूर्यग्रहण सूर्य को राहू नामक दुष्ट ग्रह के निगल जाने से होता है, जिसकी शांति के लिये अनुष्ठान आदि किये जाने की सलाह दी थी, साथ ही राहू ग्रह के दुष्प्रभाव से पानी, भोजन, कपड़े अपवित्र होना मानकर उसे पुन: शुद्ध करने के लिए कहा जाता था। जबकि भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि सूर्यग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि सूर्य पर चन्द्रमा की छाया पडऩे से होती है।
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उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है। लेकिन अब जब सबको ज्ञात ही है कि सूर्य व पृथ्वी के बीच चन्द्रमा के आने के कारण सूर्यग्रहण होता है तथा सीमित समय के लिए होता है, राहू केतु की मान्यताएँ बेबुनियाद प्रमाणित हो चुकी है तब उससे जुड़े अंधविश्वास व भ्रम को मानने की आवश्यकता नहीं है। यदि इसे पर्याप्त सावधानी से देखा जावे तो यह एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है जो न यह किन्हीं के लिए शुभ है व न किसी के लिये अशुभ। अतएव किसी भी भ्रम मेें न पडऩा ही उचित होगा।