नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय को बृहस्पतिवार को बताया गया कि एक विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दायर एक रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में “दिखावटी” जांच की गई है।
याचिकाकर्ता एस गुरलाद सिंह कहलों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. फुल्का ने 29 नवंबर, 2019 को दायर एसआईटी रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि जिस तरह से सुनवाई की गई है, उससे पता चलता है कि पूरी व्यवस्था विफल हो गई है।
रिपोर्ट का हवाला देते हुए, फुल्का ने कहा कि मामलों के अवलोकन से पता चलता है कि एक प्राथमिकी में पुलिस ने विभिन्न मामलों को जोड़कर 56 लोगों की हत्या के संबंध में चालान भेजा। उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने हालांकि केवल पांच लोगों की हत्या में आरोप तय किए और शेष के संबंध में कोई आरोप तय नहीं किया गया।
फुल्का ने रिपोर्ट का अंश पढ़ते हुए कहा, “यह ज्ञात नहीं है कि 56 हत्याओं की जगह केवल पांच हत्याओं के लिए आरोप क्यों तय किए गए और निचली अदालत ने अपराध की प्रत्येक घटना के लिए मुकदमे को अलग करने का आदेश क्यों नहीं दिया।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह रिपोर्ट देखेगी और मामले में अगली सुनवाई के लिए दो हफ्ते बाद की दी।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के सदस्य कहलों की याचिका पर न्यायालय ने पूर्व में पक्षों को नोटिस जारी किया था। कहलों ने दंगों में नामित 62 पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की मांग की थी।
शीर्ष अदालत ने 1986 के दंगों के मामलों में आगे की जांच की निगरानी के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एन ढींगरा की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया था, जिसमें क्लोजर रिपोर्ट पहले दायर की गई थी।
एसआईटी में इसके सदस्य सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी राजदीप सिंह और आईपीएस अधिकारी अभिषेक दुलार भी हैं। हालांकि, वर्तमान में इसमें केवल दो सदस्य हैं क्योंकि सिंह ने “व्यक्तिगत आधार” पर टीम का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था।
सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा 31 अक्टूबर 1984 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या किए जाने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क गए थे।
इन दंगों के दौरान अकेले दिल्ली में 2,733 लोगों की जान गई थी।
भाषा प्रशांत माधव
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