नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने आयकर अधिनियम के तहत आय के स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) ढांचे को खत्म करने का अनुरोध करते हुए दायर की गई जनहित याचिका पर विचार करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया और कहा कि दुनिया में यह ‘‘हर जगह’’ लगाया गया है।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि टीडीएस दुनिया में लगभग हर जगह लगाया गया है और इसके समर्थन में (अदालती) फैसले भी हैं।
याचिका में आयकर अधिनियम के तहत आने वाले टीडीएस ढांचे को चुनौती दी गई है, जो भुगतानकर्ता द्वारा भुगतान के समय कर की कटौती करने और उसे आयकर विभाग के पास जमा करने का प्रावधान करता है।
कटौती की गई राशि को करदाता की कर देयता में समायोजित किया जाता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘माफ कीजिए, हम इस पर विचार नहीं करेंगे…यह (याचिका) बहुत ही खराब तरीके से तैयार की गयी है। हालांकि, आप दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।’’
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अधिवक्ता अश्विनी दुबे के मार्फत से यह याचिका दायर की थी। उपाध्याय ने दलील दी कि टीडीएस प्रणाली को रद्द करने की जरूरत है।
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इसमें आयकर नियमों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हो सकते हैं और इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर किया जा सकता है।
पीठ ने अपने आदेश में, मामले के तथ्यों पर कोई टिप्पणी नहीं की और इस पर निर्णय करना, याचिका दायर किये जाने की स्थिति में उच्च न्यायालय पर छोड़ दिया।
याचिका में टीडीएस प्रणाली को ‘‘मनमाना और अतार्किक’’ बताते हुए इसे समाप्त करने का निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया गया था तथा इसे समानता सहित विभिन्न मौलिक अधिकारों का हनन बताया गया। साथ ही, याचिका में केंद्र, विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधि आयोग और नीति आयोग को पक्षकार बनाया गया था।
याचिका में टीडीएस प्रणाली को ‘‘मनमाना, अतार्किक और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (कोई भी व्यवसाय करने का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के विरुद्ध घोषित करने का निर्देश देने तथा इसे (टीडीएस प्रणाली को) शून्य और निष्क्रिय घोषित करने का अनुरोध किया गया था।’’
याचिका में, नीति आयोग को इसमें उठाए गए मुद्दों पर विचार करने और टीडीएस प्रणाली में आवश्यक बदलावों का सुझाव देने के निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया गया था।
याचिका में दलील दी गई कि टीडीएस प्रणाली करदाताओं पर प्रशासनिक और वित्तीय बोझ डालती है, जिसमें जटिल नियमों का अनुपालन, टीडीएस प्रमाण पत्र जारी करना, रिटर्न दाखिल करना और अनजाने में हुई गलतियों के लिए दंड से अपना बचाव करना शामिल है।
याचिका में कहा गया है कि यह प्रणाली आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और कम आय वालों पर अत्यधिक बोझ डालकर अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का हनन करती है।
संविधान के अनुच्छेद 23 का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया कि नागरिकों पर कर संग्रह शुल्क लगाना जबरन श्रम के समान है।
याचिका में, टीडीएस प्रणाली को कर योग्य आय सीमा से नीचे के व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला बताया गया, क्योंकि उनकी देयता की परवाह किए बिना आय के स्रोत पर कर काटा जाता है।
भाषा सुभाष माधव
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