नयी दिल्ली, 17 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में रोजाना 3,000 टन से अधिक ठोस कचरे का निस्तारण नहीं होने को लेकर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से नाराजगी जताते हुए शुक्रवार को कहा कि दिल्ली में यह खुलेआम हो रहा है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने एमसीडी के एक हलफनामे का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में अशोधित ठोस कचरे को दिसंबर, 2027 तक साफ कर दिया जाएगा।
पीठ ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी में क्या हो रहा है? हम इस हलफनामे को पढ़कर हैरान हैं, जिसमें कहा गया है कि इसे साफ करने में दिसंबर 2027 तक का समय लगेगा।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘कचरे का यह ढेर 2027 तक रहेगा। यह क्या है?’’
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में निर्माण गतिविधियों को रोकने के निर्देश जैसे कुछ कठोर आदेश पारित करने की चेतावनी दी।
दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के क्रियान्वयन से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने पाया कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिदिन 3,000 टन ठोस अपशिष्ट अनुपचारित रहता है।
पीठ ने सवाल किया, ‘‘यह अनुपचारित ठोस अपशिष्ट कहां जाता है?’’
एमसीडी के वकील ने कहा कि कचरा भलस्वा और गाजीपुर में लैंडफिल स्थलों पर ले जाया जाता है।
पीठ ने कहा, ‘‘दिल्ली में यह जारी नहीं रह सकता।’’
न्यायमित्र के रूप में शीर्ष अदालत की मदद कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि समस्या यह है कि दिल्ली सरकार और केंद्र इस मुद्दे पर सामंजस्य से काम नहीं कर रहे।
पीठ ने केंद्र से इस मुद्दे पर ध्यान देने को कहा। उसने कहा, ‘‘हम उन्हें साथ बैठाएंगे।’’
अदालत ने कहा, ‘‘हमें कुछ कठोर निर्देश जार करने के लिए मजबूर न करें। ऐसे मुद्दों से कठोर तरीके से निपटना होगा।’’
भाषा वैभव धीरज
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