धर्मांतरण कराने के 37 आरोपियों की रिट याचिका खारिज

धर्मांतरण कराने के 37 आरोपियों की रिट याचिका खारिज

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  • Publish Date - February 19, 2023 / 08:57 AM IST,
    Updated On - February 19, 2023 / 08:57 AM IST

प्रयागराज, 19 फरवरी (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लालच देकर शिकायतकर्ता को हिंदू से ईसाई बनने लिए मजबूर करने के आरोपी 37 व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को चुनौती देने वाली रिट याचिका खारिज कर दी है।

यह रिट याचिका जोस प्रकाश जॉर्ज और 36 अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी जिसमें 23 जनवरी, 2023 को फतेहपुर जिले के कोतवाली थाने में भादंसं की धाराओं– 420, 467, 468, 506, 120-बी और गैर कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध कानून की धारा 3/5 (1) के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि इससे पहल 15 अप्रैल, 2022 को लगभग इसी तरह के आरोपों के साथ भादंसं की धाराओं– 153ए, 420, 467, 468 और 506 और गैर कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध कानून की धारा 3/5 (1) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

मौजूदा मामले में शिकायतकर्ता उन गवाहों में से एक है जिसका बयान 15 अप्रैल, 2022 को दर्ज प्राथमिकी में सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किया गया था।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने अपनी दलील में कहा कि दोनों ही प्राथमिकियों में एक या दो व्यक्तियों को छोड़कर आरोपी समान ही हैं और दोनों मामलों में शिकायतकर्ता अलग-अलग हैं। उसने कहा कि दोनों ही मामलों में धोखाधड़ी और लालच देकर सामूहिक धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया गया है, इन तथ्यों को देखते हुए उक्त प्राथमिकी सीआरपीसी की धारा 154 और 158 के तहत वर्जित है।

अदालत ने शुक्रवार को इन आरोपियों के अधिवक्ता की यह दलील खारिज कर दी कि मौजूदा प्राथमिकी इसलिए रद्द कर दी जानी चाहिए क्योंकि इसी मामले में पहले से एक प्राथमिकी लंबित है।

न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति गजेंद्र कुमार की पीठ ने कहा कि यद्यपि दूसरी प्राथमिकी उसी घटना से संबंधित है, लेकिन इसे इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे एक सक्षम व्यक्ति द्वारा दर्ज कराया गया है।

अदालत ने कहा, “चूंकि 15 अप्रैल, 2022 की प्राथमिकी एक सक्षम व्यक्ति द्वारा दर्ज नहीं कराई गई थी, इसलिए इसका कोई महत्व नहीं है। समान कारण के लिए मौजूदा प्राथमिकी को दूसरी प्राथमिकी नहीं कहा जा सकता। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि समान घटना की दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।”

अदालत ने कहा, “प्राथमिकी में लगाए गए आरोप में एक संज्ञेय अपराध शामिल है। इसलिए यह प्राथमिकी रद्द किए जाने योग्य नहीं है। इन कारणों को देखते हुए इस रिट याचिका को खारिज किया जाता है।”

भाषा राजेंद्र राजकुमार

राजकुमार