नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच में सुधार लाने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण आदेश में शुक्रवार को केंद्र को तीन महीने के भीतर अनिवार्य पहुंच मानकों को लागू करने का निर्देश दिया।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ का आदेश 15 दिसंबर, 2017 को एक फैसले में अदालत द्वारा जारी किए गए पहुंच संबंधी निर्देशों पर धीमी प्रगति के जवाब में आया।
पीठ ने पाया कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम के नियमों में से एक लागू करने योग्य, अनिवार्य मानक स्थापित नहीं करता, बल्कि यह दिशानिर्देशों के माध्यम से स्व-नियमन पर निर्भर करता है।
इसने सिफारिश की कि ये अनिवार्य नियम व्यापक दिशानिर्देशों से अलग हों, विशिष्ट मानकों के साथ जिन्हें कानूनी रूप से लागू किया जा सके।
हैदराबाद में नालसर विधि विश्वविद्यालय के दिव्यांगता अध्ययन केंद्र को इन नए मानकों को विकसित करने में सरकार की सहायता करने का काम सौंपा गया है।
दिशानिर्देशों में गैर-अनुपालन के लिए जुर्माना लगाने जैसे तंत्र के माध्यम से अनुपालन सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता होगी।
इसमें कहा गया कि नालसर विधि विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन विभाग का कार्लटन बिजनेस स्कूल (सीबीएस) वर्तमान पहुंच परिदृश्य का व्यापक मूल्यांकन करने में सहायक रहा।
पीठ ने सीबीएस के प्रयासों की सराहना की और केंद्र को सीबीएस को अपने संसाधनों का उपयोग करके पूरा किए गए व्यापक कार्य के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को यह राशि 15 दिसंबर 2024 तक वितरित करने का आदेश दिया गया है।
पीठ ने राजीव रतूड़ी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई सात मार्च, 2025 तक के लिए स्थगित कर दी।
याचिका में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक सार्थक पहुंच सुनिश्चित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
पीठ ने केंद्र से निर्देशों को लागू करने की दिशा में हुई प्रगति पर रिपोर्ट देने को कहा।
भाषा नेत्रपाल रंजन
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