Sudarshan Patnaik: नई दिल्ली। ओडिशा के विश्व स्तर पर प्रशंसित रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने रूस में भारत का नाम रोशन किया है। सुदर्शन ने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित इंटरनेशनल चैंपियनशिप में गोल्डन सैंड मास्टर पुरस्कार जीता है। इस खास मौके पर सुदर्शन पटनायक का एक वीडियो सामने आया है। वीडियो में उनको पुरस्कार मिल रहा है। इस दौरान वो काफी खुश नजर आ रहे हैं।
बनाई थी 12 फीट की रेत की मूर्ति
बता दें कि प्रतियोगिता में सुदर्शन पटनायक ने महाप्रभु जगन्नाथ के रथ और उनके भक्त बलराम दास की 12 फीट की रेत की मूर्ति बनाई थी। कैप्शन में उन्होंने नमस्कार!, महाप्रभु जगन्नाथ भी लिखा था। रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में इंटरनेशनल गोल्डन सैंड मास्टर चैंपियनशिप का आयोजन 4-12 जुलाई को किया गया था। इस प्रतियोगिता का थीम इतिहास, पौराणिक कथाओं और परियों की कहानी था, जिसमें दुनिया भर के 21 मास्टर सैंड आर्टिस्ट ने भाग लिया, जिसमें पटनायक भारत से एकमात्र प्रतिभागी थे।
सीएम माझी ने दी बधाई
ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने रूस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर सुदर्शन को बधाई दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुदर्शन की अद्वितीय प्रतिभा ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई है और ओडिशा को भी गौरवान्वित किया है। माझी ने कहा कि इस प्रख्यात रेत कलाकार ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने हुनर का प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा, कि हमें उम्मीद है कि वह भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे।
सुदर्शन पटनायक से जुड़े किस्से
समुद्री लहरों के बीच पले-बढ़े और स्कूली शिक्षा से वंचित रहे सुदर्शन ने स्वाध्याय, इच्छाशक्ति और जुनून के तीन सूत्रों को अपनाकर खुद का संधान और रचना की। उनका कोई गुरु नहीं है। समाज, राजनीति, पर्यावरण और आतंकवाद जैसे जरूरी और ज्वलंत मसलों पर बनाई जाने वाली ओडिसा के पुरी से ताल्लुक रखने वाले पटनायक की कलाकृतियां चर्चा का विषय बनती रही हैं। सुदर्शन पटनायक द्वारा बनाई गई शिव-पार्वती की मूर्ति सबसे पहले लोकप्रिय हुई थी। इसके बाद सुदर्शन ने अपनी क्षमताओं को और तराशना शुरू किया और लोगों द्वारा खूब सराहा जाने लगा।
200 रुपए में चलता था 6 लोगों का परिवार
बता दे कि सुदर्शन को 1997 में इंग्लैंड जाने का मौका मिला फिर उसके बाद 1998 में विश्वकप क्रिकेट के दौरान इंग्लैंड में मूर्तिकारी की और मेरा यही काम दुनिया में चर्चा का विषय बना। भारतीय मीडिया में सुदर्शन का काम तब दिखा, जब विदेशी मीडिया से सूचना मिली कि भईया, ये प्रतिभा आपके ही मुल्क की है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुदर्शन की दादी रेलवे स्टेशन पर नौकरी करती थीं। काम के बदले उन्हें 200 रूपए मासिक मिलते थे। परिवार में कुल 6 लोग थे, जिसमें सुदर्शन समेत चार भाई-बहन, मां और दादी थी। वहीं, पिता उनके साथ नहीं रहते। इतना ही नहीं वो खाने-खर्चे का भी पैसा नहीं देते। 200 रुपए में परिवार के इतने लोगों का पोषण बहुत मुश्किल था।
नौकरी का काम करते थे सुदर्शन
परिवार चलाने के लिए सुदर्शन की मां ने एक पड़ोसी के यहां उसे काम पर रखवा दिया। यह 1989-90 के आसपास की बात रही होगी। मैं वहां घरेलू नौकर के रूप में रखा गया। सुबह और शाम काम अधिक रहता, दोपहर में थोड़ा समय मिलता। इस बीच वो समुद्र की ओर निकल लेता और रेत बटोरकर कुछ-कुछ आकृतियां बनाते थे। सुदर्शन ने बताया कि इस काम में उनका मन लगता, आनंद आता और कोई देखकर थोड़ी तारीफ कर देता तो दिल बाग-बाग हो जाता था। धीरे-धीरे सुदर्शन को उसकी कला से पहचान मिलने लगी और उसी कला को मिखारने 1994 में सुदर्शन सैंड आर्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना की और अब उनकी कोशिश है कि इसे एक लोकप्रिय सांस्कृतिक माध्यम के रूप में विकसित किया जाए।