नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) मशहूर पर्वतारोही संतोष यादव ने कहा कि संस्कृत विदुषियां समाज को संस्कारवान बना सकती हैं और बच्चों को आत्मज्ञान की शिक्षा देने से वे अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को दो बार फतह कर चुकीं पर्वतारोही संतोष यादव ने कहा, ‘‘संस्कृत की विदुषियां समाज को संस्कारवान बना सकती हैं। जन्म से पूर्व ही बच्चों को आत्मज्ञान की शिक्षा शुरू की जा सकती है, तब वह अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और समाज को उचित दिशा दिखा सकते हैं।’’
संतोष यादव राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार को आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय संस्कृत विदुषी सम्मेलन’ को संबोधित कर रही थीं। सम्मेलन में ‘समाज में संस्कृत की अहम भूमिका’ विषय पर प्रकाश डाला गया।
सत्यवती कॉलेज की प्राचार्य प्रो. अंजू सेठ की अगुवाई में इस तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (जनकपुरी) के कुलसचिव प्रोफेसर प्रो. गायत्री मुरली कृष्णा ने कहा, ‘‘वेदों से लेकर आज तक समाज तथा राष्ट्र की उन्नति में संस्कृत विदुषियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।’’
सम्मेलन की निदेशिका प्रो. कमला भारद्वाज ने कहा, ‘‘यह विदुषी सम्मेलन 25 वर्षों के प्रयास से आज युवावस्था में पहुंच गया है… इससे भविष्य में सभी संस्कृत अनुरागियों को फायदा मिलेगा।’’
संस्कृत भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष दिनेश कामथ ने कहा, “संस्कृत विदुषियां ही विकसित भारत का आधार हैं क्योंकि संस्कृत से ही भारत की उन्नति संभव है। संस्कृत जन जीवन की जीवंत भाषा है। प्राचीन काल में यह सामान्य जन की बोलचाल की भी भाषा थी।”
इस मौके पर, विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वालीं 10 महिलाओं को सम्मानित किया गया।
भाषा निहारिका अजय अविनाश
अविनाश