श्रीनगर, 28 नवंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि संपत्ति का अधिकार अब मानवाधिकार के दायरे में आता है।
न्यायमूर्ति वसीम सादिक नरगल ने 20 नवंबर को एक याचिका का निपटारा करते हुए सेना को पिछले 46 वर्षों के कुल किराये का भुगतान एक महीने के भीतर करने का निर्देश दिया। सेना ने 1978 से याचिकाकर्ता के एक भूखंड पर कब्जा कर लिया था।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘संपत्ति के अधिकार को अब न केवल संवैधानिक या वैधानिक अधिकार माना जाता है, बल्कि यह मानवाधिकार के दायरे में भी आता है। मानवाधिकारों को आश्रय, आजीविका, स्वास्थ्य, रोजगार आदि जैसे व्यक्तिगत अधिकारों के दायरे में माना गया है। पिछले कुछ वर्षों में मानवाधिकारों का दायरा बढ़ा है।’’
अब्दुल मजीद लोन द्वारा 2014 में दायर याचिका के अनुसार सेना ने 1978 में कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के निकट तंगधार में उनकी 1.6 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने दावा किया कि उन्हें अपनी जमीन के लिए कोई मुआवजा या किराया नहीं मिला है।
केंद्र के वकील ने दलील दी कि सेना ने भूमि पर कब्जा नहीं किया है, जबकि राजस्व विभाग ने पुष्टि की कि यह भूमि 1978 से सेना के कब्जे में है।
अदालत ने संबंधित भूमि के संबंध में नये सिरे से सर्वेक्षण का आदेश दिया और राजस्व अधिकारियों की रिपोर्ट के माध्यम से पाया कि यह भूमि 1978 से सेना के कब्जे में थी।
न्यायालय ने कहा कि भूमि मालिक को कभी भी कोई किराया या मुआवजा नहीं मिला।
अदालत ने कहा, ‘‘उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया है और कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना उन्हें बहुमूल्य संवैधानिक अधिकार से वंचित किया है।’’
भाषा
देवेंद्र सुरेश
सुरेश