महिलाओं को निकाह खत्म करने का अधिकार, हाई कोर्ट के फैसले पर AIMPLB ने जताई आपत्ति, ​अस्वीकार्य बताया |

महिलाओं को निकाह खत्म करने का अधिकार, हाई कोर्ट के फैसले पर AIMPLB ने जताई आपत्ति, ​अस्वीकार्य बताया

Right to annul women's marriage: इसमें कहा गया है कि जरूरी नहीं कि उसे अपने पति की सहमति की आवश्यकता हो। AIMPLB के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने हाई कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:54 PM IST, Published Date : November 6, 2022/1:40 pm IST

Right to annul women’s marriage: लखनऊ। केरल हाई कोर्ट के एक फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने आपत्ति जताई है। इस सप्ताह की शुरुआत में केरल उच्च न्यायालय के एक आदेश पर मुस्लिम महिला को अपना निकाह (विवाह) स्वयं समाप्त करने का अधिकार दिया गया है। इसमें कहा गया है कि जरूरी नहीं कि उसे अपने पति की सहमति की आवश्यकता हो। AIMPLB के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने हाई कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई है।

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मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने कहा है कि हाई कोर्ट ने विशेष मामले में शरिया के प्रावधानों की व्याख्या नहीं की, बल्कि उस पर कानून बनाने की कोशिश की। इस आदेश को बोर्ड ने अस्वीकार्य बताया। मौलाना रहमानी ने कहा कि इस्लाम केवल चार तलाक (तलाक) के विकल्प प्रदान करता है। एक ट्रिपल तलाक है, जिसमें पति को तलाक देने का अधिकार है। दूसरा, खुला है, जहां आमतौर पर पत्नी की ओर से तलाक ले लिया जाता है और पति के स्वीकार करने के बाद लागू होता है। तीसरा, तलाक-ए-तफवीज (प्रत्यायोजित तलाक) है, इसके तहत भावी पत्नी ने निकाहनामा (विवाह अनुबंध) में उल्लेख किया है कि अगर वह उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता है, मानसिक और शारीरिक यातना देता है या अपने अधीन रखने की कोशिश करता है तो उसे अपने पति की सहमति के बिना तलाक के लिए अधिकृत किया जाएगा। चौथा विकल्प काजी और अदालत के समक्ष तलाक प्रक्रिया का है। उन्होंने कहा कि शरिया में तलाक का कोई अन्य तरीका नहीं बताया गया है। केरल हाई कोर्ट ने इस्लामी न्यायशास्त्र के आलोक में तलाक के प्रावधानों की व्याख्या करने के अपने संक्षिप्त विवरण को पार कर लिया है।

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हाई कोर्ट के आदेश के बाद आई प्रतिक्रिया

Right to annul women’s marriage: एआईएमपीएलबी की प्रतिक्रिया केरल हाई कोर्ट की ओर से मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के विघटन के तहत अपनी पत्नी को दिए गए तलाक को चुनौती देने वाली एक पति द्वारा समीक्षा याचिका को खारिज करने के बाद आई है। जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और सीडी डायस की खंडपीठ ने कहा कि शादी को समाप्त करना एक मुस्लिम पत्नी का अधिकार है। खंडपीठ ने कहा कि यह कुरान के अनुसार था और इस कदम को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए अपने पति के फैसले से प्रभावित नहीं कर सकता। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि वह इस्लामी पादरियों की राय के सामने आत्मसमर्पण नहीं करेगा, जिनके पास कानून के मुद्दे पर कोई कानूनी प्रशिक्षण नहीं है।

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हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं, विश्वासों और प्रथाओं से संबंधित मामलों में उनकी राय अदालत के लिए मायने रखती है और अदालत को उनके विचारों के लिए सम्मान होना चाहिए। कोर्ट ने आगे खुला से संबंधित कुरान की आयत- अध्याय 2, आयत 229 का हवाला दिया और कहा कि यह स्पष्ट रूप से घोषित करता है कि एक मुस्लिम पत्नी को अपनी शादी को समाप्त करने का अधिकार है।

कोर्ट में दायर याचिका में पति ने तर्क एक मुस्लिम महिला को तलाक की मांग करने का अधिकार है। हालांकि, महिला को खुला उच्चारण करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है, जैसे पति अपनी पत्नी को तीन तलाक का अधिकार है। इसकी तर्ज पर महिलाओं को अधिकार नहीं दिया गया है।