नयी दिल्ली, 29 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली सहित विभिन्न अस्पतालों को उन डॉक्टरों की अनधिकृत अनुपस्थिति को नियमित करने का निर्देश दिया, जो कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना के विरोध में हुए प्रदर्शनों का हिस्सा थे।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के सेमिनार कक्ष में पिछले साल नौ अगस्त को एक प्रशिक्षु महिला चिकित्सक का शव मिला था, जिसकी बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना के विरोध में डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों ने पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया था।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने बुधवार को चिकित्सकों के एक संगठन की इस दलील का संज्ञान लिया कि कुछ अस्पतालों ने शीर्ष अदालत के 22 अगस्त 2024 के आदेश के बाद डॉक्टरों की अनुपस्थिति को नियमित कर दिया था, जबकि दिल्ली एम्स सहित कई अस्पतालों ने अनुपस्थिति की अवधि को छुट्टी के रूप में मानने का फैसला किया था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम यह स्पष्ट करना उचित समझते हैं कि अगर विरोध करने वाले चिकित्सक उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद काम पर लौट गए थे, तो उनकी गैर-हाजिरी को नियमित किया जाएगा और इसे ड्यूटी से अनुपस्थिति नहीं माना जाएगा। यह आदेश मामलों के विशिष्ट तथ्यों एवं परिस्थितियों के मद्देनजर जारी किया गया है और इससे कोई मिसाल नहीं कायम की जा रही है।”
चिकित्सकों के संगठन की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि विरोध अवधि को छुट्टी मानने का फैसला स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम के कुछ छात्रों के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अस्पताल शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन करेंगे।
मेहता ने कहा कि दिल्ली स्थित एम्स ने विरोध अवधि में डॉक्टरों की अनुपस्थिति को उनके द्वारा ली गई छुट्टी के रूप में मानने का फैसला किया।
पीठ ने कहा, “पूर्व में पारित फैसले में कहा गया था कि आदेश की तारीख तक विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा। इसके मद्देनजर कल्याणी और गोरखपुर जैसे कुछ एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ ने अनुपस्थिति को नियमित कर दिया है। हालांकि, कुछ अन्य संस्थानों ने उक्त अवधि को इस रूप में लिया है कि डॉक्टर छुट्टी पर थे।”
पिछले साल 22 अगस्त को शीर्ष अदालत ने आरजी कर घटना को लेकर देश भर में विरोध-प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की थी।
न्यायालय ने कहा था कि “न्याय और चिकित्सा” को रोका नहीं जा सकता। उसने अस्पतालों को निर्देश दिया था कि काम पर लौटने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
बुधवार को प्रधान न्यायाधीश ने एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी को प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या मामले में दायर याचिका वापस लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यह याचिका कोलकाता की एक अदालत के आरोपी को दोषी करार दिए जाने से पहले दायर की गई थी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “कृपया इस तथ्य पर ध्यान दें कि मामले में दोषसिद्धि हो चुकी है… आपकी याचिका में बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जो विवादित हैं। हलफनामे के माध्यम से आप अदालत में जो कुछ भी कहेंगी, उसके परिणाम होंगे।”
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का प्रतिनिधित्व कर रहे मेहता ने कहा कि यह याचिका अनजाने में दोषी की मदद कर सकती है।
मामले से जुड़ी इस याचिका का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “(याचिकाकर्ता) वकील का कहना है कि याचिका (निचली अदालत के) फैसला सुनाए जाने से पहले दायर की गई थी। याचिका को अनुरोध के अनुसार वापस लिया गया मानकर खारिज किया जाता है।”
कोलकाता की एक अदालत ने 20 जनवरी को मामले में दोषी करार दिए गए संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
पिछले साल 10 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने सीबीआई की नवीनतम वस्तुस्थिति रिपोर्ट का संज्ञान लिया था और भरोसा जताया था कि मुकदमा एक महीने के भीतर निपटा दिया जाएगा।
पीठ ने सभी पक्षकारों को निर्देश दिया था कि वे लिंग आधारित हिंसा को रोकने और देशभर के अस्पतालों में डॉक्टरों एवं चिकित्सा कर्मचारियों के वास्ते सुरक्षा प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए अपनी सिफारिशें एवं सुझाव अदालत की ओर से नियुक्त राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) के साथ साझा करें।
मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए पीठ ने अपराध के मद्देनजर चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए 20 अगस्त को एनटीएफ का गठन किया था।
एनटीएफ ने पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार के हलफनामे के हिस्से के रूप में दायर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए एक अलग केंद्रीय कानून की जरूरत नहीं है।
एनटीएफ ने कहा था कि छोटे अपराधों से निपटने के लिए राज्यों के कानूनों में, जबकि गंभीर अपराधों के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 में पर्याप्त प्रावधान हैं।
एनटीएफ ने कहा था कि 24 राज्यों ने “स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों” और “चिकित्सा पेशेवरों” को परिभाषित करते हुए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ हिंसा पर ध्यान केंद्रित करते हुए कानून बनाए हैं।
इसके बाद पीठ ने कहा था कि मामले की अगली सुनवाई 17 मार्च 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी। हालांकि, उसने कहा था कि अगर बलात्कार और हत्या के मामले की सुनवाई में देरी हो रही है, तो पक्षकार शीघ्र या आपात सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं।
आरजी कर मामले की जांच शुरुआत में कोलकाता पुलिस ने की थी। हालांकि, कलकत्ता उच्च न्यायालय के पुलिस जांच पर असंतोष जाहिर करने के बाद यह मामला 13 अगस्त को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने बाद में 19 अगस्त 2024 को मामले की जांच की निगरानी शुरू की थी।
भाषा पारुल वैभव
वैभव
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)