कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधान अदालतों को आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते: न्यायालय |

कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधान अदालतों को आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते: न्यायालय

कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधान अदालतों को आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते: न्यायालय

:   Modified Date:  July 18, 2024 / 08:21 PM IST, Published Date : July 18, 2024/8:21 pm IST

नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति को जमानत देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधान अदालतों को किसी आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते हैं।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवला और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार ‘‘सर्वव्यापी और पवित्र’’ है।

पीठ ने कहा, ‘‘किसी संवैधानिक अदालत को दंडात्मक कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधानों के कारण किसी आरोपी को तब जमानत देने से नहीं रोका जा सकता जब उसे पता चलता है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी-विचाराधीन कैदी के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।’’

इसने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में ऐसे वैधानिक प्रतिबंध आड़े नहीं आएंगे। यहां तक ​​कि किसी दंडात्मक कानून की व्याख्या के मामले में, चाहे वह कितना भी कठोर क्यों न हो, एक संवैधानिक न्यायालय को संवैधानिकता और कानून के शासन के पक्ष में झुकना होगा, जिसमें स्वतंत्रता एक मूलभूत हिस्सा है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी विशेष मामले के दिए गए तथ्यों के मद्देनजर एक संवैधानिक अदालत जमानत देने से इनकार कर सकती है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि किसी विशेष कानून के तहत जमानत नहीं दी जा सकती।

न्यायालय ने नेपाल निवासी शेख जावेद इकबाल की अपील को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। इसने इकबाल को जमानत पर रिहा कर दिया।

पुलिस के अनुसार, इकबाल ने स्वीकार किया था कि वह नेपाल में नकली भारतीय मुद्रा नोटों के अवैध व्यापार में शामिल था। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों तथा बाद में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इकबाल की ओर से पेश वकील एम एस खान ने कहा कि अपीलकर्ता नौ साल से अधिक समय से हिरासत में है।

खान ने कहा कि निकट भविष्य में आपराधिक मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है और इसलिए इकबाल को जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने दलील का विरोध किया और कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं और चूंकि वह एक विदेशी नागरिक है, इसलिए उसके भागने का खतरा है।

उन्होंने कहा कि इसलिए आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता और निचली अदालत को मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘केवल इस आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप बहुत गंभीर हैं, हालांकि मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि जमानत देते हुए निचली अदालत अपीलकर्ता का पासपोर्ट और/या नागरिकता दस्तावेज जब्त कर लेगी।

इसने कहा, ‘‘यदि ये अभियोजन पक्ष के पास हैं तो उन्हें निचली अदालत को सौंप दिया जाएगा। अपीलकर्ता निचली अदालत के क्षेत्राधिकार को नहीं छोड़ेगा; वह निचली अदालत को अपना पता प्रस्तुत करेगा।’’

पीठ ने कहा, ‘‘वह मुकदमे की प्रत्येक तारीख पर निचली अदालत के समक्ष उपस्थित होगा। उपरोक्त के अलावा, अपीलकर्ता को थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी।’’

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इकबाल सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा और न ही गवाहों को धमकी देगा।

पीठ ने कहा कि यदि जमानत शर्तों का कोई उल्लंघन होता है तो अभियोजन जमानत रद्द कराने के लिए निचली अदालत जा सकता है।

भाषा नेत्रपाल अविनाश

अविनाश

 

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