नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) राज कपूर को उनकी बेटी की एक किताब में यह कहते हुए उद्धृत किया गया है, ‘‘जब मैं मर जाऊं, तो मेरे शव को स्टूडियो ले आना। संभव है कि मैं उनकी रोशनी के बीच जागूं और एक्शन…एक्शन चिल्लाऊं।’’ उनके शब्द मानो एक फ्रेम में कैद हो गए हैं और एक ऐसे फिल्मकार के जुनून की गवाही दे रहे जिन्होंने भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ी।
राज कपूर 14 दिसंबर को 100 साल के हो जाते। उनकी पहली फिल्म 1948 में प्रदर्शित हुई थी, जो आजादी के एक साल बाद की बात है। जैसे-जैसे भारत दशकों में विकसित हुआ, वैसे-वैसे उनकी फिल्में भी विकसित होती गईं। उनकी शुरुआती श्वेत श्याम फिल्में समाज के सपनों और संघर्षों को दर्शाने वालीं थीं। बाद में चमकदार रंगों में उनकी फिल्में अवतरित हुईं।
राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म से ही आर के स्टूडियो की शुरुआत की। उन्हें आज भी भारतीय सिनेमा के वास्तविक ‘शोमैन’ के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने ‘‘बरसात’’ के उत्साही प्रेमी, ‘‘श्री 420’’ के गरीब, ‘‘आवारा’’ के चैपलिन जैसे बदकिस्मत युवा, ‘‘मेरा नाम जोकर’’ के संवेदनशील जोकर और ‘‘संगम’’ में अपनी पत्नी का बेहद ख्याल रखने वाले पति के तौर पर यादगार भूमिका निभाई। ‘‘बॉबी’’, ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’ और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ जैसी फिल्में भी शामिल हैं, जिनका उन्होंने निर्माण और निर्देशन किया, लेकिन उनमें अभिनय नहीं किया।
राज कपूर ने दो अन्य महान अभिनेताओं देव आनंद और पेशावर से ही बॉम्बे (अब मुंबई) आए दिलीप कुमार के साथ बड़े परदे पर राज किया। हालांकि, अपने सहयोगियों से अलग, राज कपूर न केवल अभिनेता थे, बल्कि निर्माता और निर्देशक भी थे, जिनकी फिल्मों का संगीत कई दशकों बाद भी लोगों के दिलों को छूता है।
उन्होंने केवल 10 फिल्में निर्देशित कीं, जिनमें से कुछ अविस्मरणीय क्लासिक फिल्मों की सूची में ‘‘आवारा’’ और ‘‘श्री 420’’ हैं, अन्य ‘‘बॉबी’’ और ‘‘संगम’’ ब्लॉकबस्टर फिल्में और फिर विवादास्पद हिट फिल्में हैं, जिनमें ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’, ‘‘प्रेम रोग’’ और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ शामिल हैं।
राज कपूर की फिल्मों की सूची में ‘‘अंदाज’’, ‘‘जागते रहो’’ और ‘‘तीसरी कसम’’ शामिल हैं, जहां अभिनेता के रूप में राज कपूर ने अपनी चमक बिखेरी। उन्होंने अपने आर के स्टूडियो के जरिए फिल्में भी बनाईं, जो कई दशकों तक इंडस्ट्री में सबसे प्रभावशाली फिल्म स्टूडियो में से एक रहा। इन सबमें एक फ्लॉप-बेहद महत्वाकांक्षी फिल्म ‘‘मेरा नाम जोकर’’ भी थी, जिसे अब क्लासिक माना जाता है। इसकी असफलता ने उन्हें तोड़ दिया और उन्होंने किशोर रोमांस पर आधारित ‘‘बॉबी’’ का निर्माण किया।
उनकी सभी फिल्मों में बेहतरीन गाने थे। वैश्विक हिट ‘‘आवारा हूं’’, ‘‘जीना यहां मरना यहां’’, ‘‘प्यार हुआ इकरार हुआ’’ या ‘‘हम तुम एक कमरे में बंद हो’’।
राज कपूर के भाई शशि कपूर ने एक वृत्तचित्र में उन्हें इस तरह याद किया, ‘‘वह एक अद्भुत संगीतकार थे…मुझे लगता है कि यह जन्मजात था। मेरे पिता से नहीं, शायद उन्हें यह मेरी मां से मिला था जो एक गायिका थीं…वह कोई भी वाद्य यंत्र बजा सकते थे, चाहे वह अकॉर्डियन, तबला, पियानो, बांसुरी हो।’’
राज कपूर तीन भाइयों में सबसे बड़े थे-जिनमें अविस्मरणीय शम्मी कपूर भी शामिल थे। अपने पिता पृथ्वीराज कपूर की छाया से दूर, तीनों ने फिल्म जगत में अपनी अलग जगह बनाई।
राज कपूर सिर्फ 17 साल के थे जब उन्होंने अपने पिता से पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में करियर बनाने की इजाजत मांगी। पृथ्वीराज इस शर्त पर राजी हुए कि वह 10 रुपये मासिक वजीफे पर उनके द्वारा नियुक्त कई सहायकों में से एक के रूप में काम करेंगे।
वर्ष 1947 में मधुबाला के साथ बनी ‘‘नील कमल’’ सहित अभिनेता के रूप में कुछ फिल्मों में काम करने के बाद, राज कपूर ने ‘‘आग’’ के साथ निर्देशक और निर्माता के रूप में कदम रखने का फैसला किया। उस समय उनकी उम्र 24 साल थी और वह उस समय दुनिया के सबसे युवा फिल्मकारों में से एक थे।
‘‘आग’’ आंतरिक बनाम बाहरी सुंदरता, प्रेम और निष्ठा पर भी चिंतन थी, ये ऐसे विषय थे जो फिल्मकार के साथ गहराई से जुड़े थे और उन्होंने इसे ‘‘बरसात’’ (1949) और ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’ (1978) में फिर से पेश किया।
राज कपूर ने अपनी कई प्रारंभिक फिल्मों में चार्ली चैपलिन के व्यक्तित्व को अपनाया, जिसकी शुरुआत 1951 में आई ‘‘आवारा’’ से हुई और फिर ‘‘श्री 420’’ तथा ‘‘जिस देश में गंगा बहती है’’ में भी उन्होंने काम किया, जिसका निर्देशन उनके विश्वस्त सहयोगी राधू करमाकर ने किया था।
बतौर फिल्मकार अपने 37 साल के करियर में 1948 में ‘‘आग’’ से शुरू होकर 1985 में ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ तक वह ज़्यादातर एक ही प्रतिभाशाली टीम के साथ जुड़े रहे। इसमें लेखक के ए अब्बास, छायाकार करमाकर, संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार शैलेंद्र और गायक मुकेश शामिल थे, जिन्हें वे अपनी आत्मा कहते थे और जो उनकी आवाज के रूप में जाने जाते थे।
राज कपूर के भाई शशि के अनुसार, उनके पिता और उनकी नाट्य प्रस्तुतियों ने उनके बड़े भाई की शुरुआती फिल्मों में समाजवादी भावना को प्रभावित किया। राज कपूर ने एक बार बताया था कि ‘‘आवारा’’ इतनी सनसनी क्यों बन गई।
‘‘मेरा नाम जोकर’’ में राज कपूर के साथ काम करने वाली सिमी ग्रेवाल के एक वृत्तचित्र में फिल्मकार ने कहा, ‘‘यह पटकथा मेरे दिमाग में ठीक उस समय आई जब भारत एक नयी सामाजिक अवधारणा विकसित कर रहा था…।
राज कपूर की फिल्मों की नायिकाएं उनकी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाती थीं। ये नायिकाएं ज्यादातर सफेद कपड़े पहने होती थीं। इनमें उनका वैजंतीमाला, पद्मिनी और सबसे महत्वपूर्ण तालमेल नरगिस के साथ था। दोनों की स्थायी साझेदारी ने ‘‘बरसात’’, ‘‘आवारा’’, ‘‘अंदाज’’ और ‘‘चोरी चोरी’’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं। ‘‘जागते रहो’’ में उनकी संक्षिप्त उपस्थिति के साथ यह तालमेल समाप्त हो गया।
साल 1949 में ‘‘अंदाज’’ के बाद रिलीज हुई ‘‘बरसात’’ के एक दृश्य से आर के स्टूडियो का ‘लोगो’ प्रेरित है। इस ‘लोगो’ में राज कपूर एक हाथ में वायलिन लिए हुए हैं और नरगिस उनके दूसरे हाथ में लटकी हुई हैं। 2005 में ‘टाइम’ पत्रिका ने ‘‘आवारा’’ को ‘विश्व सिनेमा में अब तक की शीर्ष दस महानतम प्रस्तुतियों’ में शामिल किया था। यह वह फिल्म भी थी जिसने राज कपूर की भारतीय सीमाओं से परे, विशेष रूप से रूस में स्थायी स्टारडम स्थापित किया।
उनका जन्म 14 दिसंबर 1924 को पेशावर में रणबीर राज कपूर के रूप में हुआ था। बाद में उन्होंने चेंबूर में जमीन खरीदी और मुंबई में अपनी जड़ें जमा लीं। यहीं पर आर के स्टूडियो की स्थापना हुई।
इसने उनके सपनों को पंख दिए। यहां एक ऐसा फिल्मकार था जो किसी भी तरह के बंधन से मुक्त था, चाहे वह ‘‘आवारा’’ में एक स्वप्न दृश्य को फिल्माने के लिए एक विशाल सेट डिजाइन करना हो, ‘‘बॉबी’’ में महत्वपूर्ण दृश्यों को फिल्माने के लिए ट्यूलिप और महंगी शैंपेन लाना हो या ‘‘मेरा नाम जोकर’’ का सर्कस रिंग, जिसमें उन्होंने आखिरी बार मुख्य भूमिका निभाई थी।
वर्ष 1964 में उनकी सिनेमा में बदलाव आया। ‘‘संगम’’ पहली बड़ी हिंदी फिल्म थी जिसे टेक्नीकलर और विदेश में शूट किया गया था। यह वह फिल्म भी है जिसमें उनके ‘‘शोमैन’’ की झलक साफ दिखाई देती है। इसी फिल्म से उनके पहले के कामों की आदर्शवादिता और गहन रोमांटिकतावाद की जगह अधिक लोकप्रिय स्वर उभर कर सामने आते हैं।
राज कपूर की बाद की सबसे उल्लेखनीय फिल्मों में ‘‘बॉबी’’ (1973), ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’’ (1978) और ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ (1985) महिलाओं के चित्रण, अश्लीलता समेत कई तरह के विवादों में रहीं। लेकिन राज कपूर ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया।
रितु नंदा ने अपनी किताब ‘‘राज कपूर स्पीक्स’’ में अपने पिता के हवाले से लिखा है, ‘‘हम नग्नता देखकर चौंक जाते हैं, हमें परिपक्व होने की जरूरत है। मैंने हमेशा महिलाओं का सम्मान किया है, लेकिन समझ में नहीं आता कि मुझ पर उनका शोषण करने का आरोप क्यों लगाया जाता है। फेलिनी (इतालवी फिल्मकार) की नग्न महिला को कला माना जाता है, लेकिन जब मैं परदे पर किसी महिला की सुंदरता दिखाता हूं, तो उसे शोषण कहा जाता है।’’
दो मई 1988 को दादा साहब फाल्के पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली आए राज कपूर को अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा और वह सभागार में ही बेहोश हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। एक महीने बाद 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
भाषा आशीष रंजन
रंजन