चेन्नई, आठ जनवरी (भाषा) तमिलनाडु सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि राज्य भर में अर्दली की ‘औपनिवेशिक’ प्रथा को रोकने के लिए सक्रियता से कार्रवाई शुरू की गई है।
सुजाता द्वारा दायर याचिका के न्यायमूर्ति एस. एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति एम. ज्योतिरमन के समक्ष सुनवाई के लिए आने पर अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) आर. मुनियप्पाराज ने उपरोक्त दलील दी।
अपनी याचिका में सुजाता ने प्राधिकारियों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वे उनके अभ्यावेदन पर विचार करें और फैसला करें। इसमें कई शिकायतें शामिल थीं, जिनमें जेल प्राधिकारियों द्वारा गृह कार्यों के लिए वर्दीधारी कर्मियों को सेवा पर रखने के खिलाफ एक शिकायत भी शामिल थी।
पीठ ने आठ नवंबर, 2024 को गृह सचिव को निर्देश दिया था कि वह राज्य पुलिस की अपराध शाखा, अपराध अन्वेषण विभाग (सीबीसीआईडी) की सहायता से या खुफिया शाखा से आवश्यक जानकारी प्राप्त करके विस्तृत जांच करें और उन जेल अधिकारियों के खिलाफ सभी उचित कार्रवाई शुरू करें जिन्होंने तमिलनाडु की सभी जेलों में वर्दीधारी कर्मियों/लोक सेवकों को अपने घरेलू या निजी काम के लिए नियुक्त किया है।
हाल में पारित अपने आदेश में, पीठ ने कहा कि गृह विभाग के उप सचिव ने पुलिस विभाग और जेल विभाग दोनों में इस अर्दली व्यवस्था को समाप्त करने के लिए की गई कार्रवाई के संदर्भ में एक स्थिति रिपोर्ट दायर की है, जिसमें उच्च अधिकारियों के गृह कार्य के लिए वर्दीधारी सेवा कर्मियों की प्रतिनियुक्ति की गई थी।
पीठ ने कहा कि अतिरिक्त सरकारी वकील ने कहा है कि तमिलनाडु में अर्दली व्यवस्था की औपनिवेशिक प्रथा को समाप्त करने के लिए सभी सक्रिय कार्रवाई शुरू की गई है। एपीपी ने कहा कि सरकार ने इसे समाप्त करने के आदेश जारी किए हैं और अधिकारी इस व्यवस्था को समाप्त करने की प्रक्रिया में हैं।
पीठ ने स्पष्ट किया कि इस संबंध में औपनिवेशिक प्रथा या ऐसी मानसिकता को भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘यह व्यवस्था असंवैधानिक है।’’
भाषा सुरभि नरेश
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